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आंतर संचारी-भाव


शब्दार्थ—कोह—क्रोध। विस्मरन—विस्मरण, भूलना।

भावार्थ—अद्भुत दरसन, भय, अत्यन्त चिन्ता आदि के कारण मूर्छा होकर शरीर का जब ज्ञान जाता रहता है तब उसे मोह कहते हैं।

उदाहरण
सवैया

औरौ कहा कोऊ बालबधू है, नयो तन जोबन तोहि जनायो।
तेरेई नैन बड़े बृज मैं, जिनसो बस कीनों जसोमति जायो॥
डोलतु है मनों मोल लियो, कविदेव न बोलत बोल बुलायो।
मोहन कौ मन मानिक सौगुन, सो गुहिते उर सो उरझायो॥

शब्दार्थ—औरौ—दूसरी भी। जसोमति—यशोदा। मनो...लियो—मानो मोल लिया हुआ है।

११—स्मृति
दोहा

संसकार सम्पति विपति, अधिक प्रीति अति त्रास।
प्रिय, अप्रिय, सुमिरन, सुमृति, इकचित मौन उसांस॥

शब्दार्थ—अतित्रास—अधिक भय। उसांस—श्वांस मरना।

भावार्थ—सम्पत्ति, विपत्ति, प्रीति, त्रास, प्रिय, अप्रिय बातों के एकवित्त होकर स्मरण करने को स्मृति कहते हैं।

उदाहरण
सवैया

नीर भरे मृग कैसे बड़े दृग, देखति नीचे निचाइ निचोलनि।