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भाव-विलास


शब्दार्थ—यथारथ—यथार्थ, ठीक—ठीक।

भावार्थ—शास्त्रादि के विचार से यथार्थ ज्ञान होने को मति कहते हैं। इसमें उपदेशादि अनुभव होते हैं।

उदाहरण
सवैया

स्याम के संग सदा बिलसी, सिसुता मैं सु तामैं कछू नहीं जान्यो।
भूले गुपाल सों गर्व्व कियो, गुन जोबन रूप वृथा अरि मानो॥
ज्यो न निगोड़ो तबै समुझौ, 'कविदेव' कहा अब जो पछितानो।
धन्य जियै जग में जनते, जिनको मनमोहन तें मन मानो॥

शब्दार्थ—बिलसी—विलास किया। सिसुता मैं—बचपन में। सुता मैं......जान्यों—उस समय कुछ भी ज्ञान न रहा। भूलें गर्व्व कियो—व्यर्थ ही उनसे गरूर किया। गुन—गुण। जोबन—यौवन। बृथा—व्यर्थ। ज्यो......समुझौं—यदि यह दुष्ट उस समय न समझा। कहा......पछितानो—तो अब पछताने से क्या होता है। जिनको—जिनका। मन-मानों-—मन लगा।

२७—उपालम्भ
दोहा

उपालम्भ अनुनय विनय, अरु उपदेश बखान।
इनकौ अंतर भानु कहि, देव मध्य मति जान॥
उपालम्भ द्वै भाँति कौ, बरनि कहै कविराइ।
एक कहावै कोप ते, दूजौ प्रनय सुभाइ॥

शब्दार्थ—अनुनय विनय—प्रार्थना। द्वै भांति को—दोतरह का।