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आंतर संचारी-भाव


भावार्थ—विनय प्रार्थना उपदेशादि द्वारा अपने अभिप्राय को कहना उपालम्भ कहलाता है। यह दो तरह का होता है। एक कोप; दूसरा प्रणय।

उदाहरण पहला—(कोप)
सवैया

बोलत हौ कत बैन बड़े, अरु नैन बड़े बड़रान अड़े हौ।
जानति हौं छल छैल बड़े जू, बड़े खन के इह गैल गड़े हौ॥
देव कहै हरि रूप बड़े, ब्रजभूप बड़े हम पै उमड़े हौ।
जाउ जू जैये अनीठ बड़े, अरु ईठ बड़े ढीठ बड़े हौ॥

शब्दार्थ—बड़े खन के—बड़ी देर के। इह गैल अड़े हौ—इस मार्ग में खड़े हो। ढीठ—धृष्ठ।

उदाहरण दूसरा—(प्रणय)
सवैया

लाल भले हौ कहा कहिये, कहिये तौ कहा कहूँ कोऊ कहैयै।
काहू कहू न कही न सुनी, सु हमैं कहिबे कहि काहि सुनैयै॥
नैन परै न परै कर मैन, न चैन परै जुपै बैन बरैयै।
'देव' कहे नित को मिलि खेलि, इतै हित कौ चित कौ न चुरैयै॥

शब्दार्थ—मैन—कामदेव।

उदाहरण तीसरा—(अनुनय-विनय)
सवैया

वे बड़भाग बड़े अनुराग, इतै अति भाग सुहाग भरी हौ।
देखौ बिचारि समौ सुख कौ तन, जोबन जोतिन सों उजरी हौ॥