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भाव-विलास

पोले। अडोल—बिना हिले। डरी रही—पड़ी रही। भौन—घर। भोरते.....भरी रही—सबेरे से बड़ी भारी भीड़ लगी रही। करोरि—करोड़ों अर्थात् अनेक। मरू—मुश्किल से कठिनता से। चितई—देखा। मरी......रही—मरे के समान पड़ी रही।

३२—त्रास
दोहा

घोर श्रवन दरसन सुमृति, तंभ पुलक भयगात।
छोभ होइ जो चित्त मैं, त्रास कहत कवि तात॥
चित्त छोभ द्वै भाँति कौ, एक त्रास अरु भीति।
अकसमात तै त्रास, अरु विचार ते भयरीति॥

शब्दार्थ—सुमृति—स्मृति स्मरण। भीति—भय, डर।

भावार्थ—कोई अप्रिय बात के सुनने, स्मरण करने आदि से चित्त में जो क्षोभ पैदा होता है उसे त्रास कहते हैं। यह चित्त क्षोभ भी दो तरह का होता है। एक त्रास जो अकस्मात् पैदा होता है और दूसरा भय जो (पूर्वापर के) विचार से उत्पन्न होता है।

उदाहरण पहला (त्रास)
सवैया

श्री वृषभानलली मिलिकै, जमुनाजल केलि कों हेलिनु आनी।
रोमवली नवली कहिदेव, सु सोने से गात अन्हात सुहानी॥
कान्ह अचानक बोलि उठे, उर बाल के व्याल-बधू लपिटानी।
धाइ को धाइ गही ससवाइ, दुहूं कर भारत अंग अपानी॥

शब्दार्थ—वृषभान लली—राधा। जमुना जल......आनी—सखियों के साथ यमुना नहाने आयी। रोमबली—रुँए, ए, रोम, बाल। सोने सेगात-