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वियोग शृंगार

 

(घ) पूर्वानुराग—(राधा)
उदारण
सवैया

सांसनि ही सो समीरु गयो अरु, आँसुन ही सब नीर गयोढरि।
तेज गयो गुन लै अपनों, अरु भूमि गई तनु की तनुता करि॥
देव जियै मिलिवे ही की आस, कि आसहू पास अकास रह्यो भरि।
जादिन तें मुख फेरि हरै हँसि, हेरि हियो जू लियो हरि जू हरि॥

शब्दार्थ—सांसनि—श्वासों से।

वियोग की दस अवस्थाएँ
छप्पय

प्रथम कहो अभिलाष, बहुरि चिन्ता सुमिरन कहु।
तातें है गुन कथन, बहुरि उद्वेगहि बरनहु॥
फिर प्रलाप उन्माद, व्याधि अरु जड़ता जानौ।
बहुरि मरन यहि भाँति, अवस्था दस उर आनौ॥
ए होंइ पूर्वअनुराग मैं, दोउन के कविदेव कहि।
अरु एक मरन बरनत न कवि, जो बरनै तो रसहिगहि॥

दोहा

चिन्ता जड़ता, व्याधि अरु, सुमिरन मरनुन्माद।
संचारिन मैं है कहे, दम्पति विरह विषाद॥