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भाव-विलास

 

१—गुरु मानमोचन
उदाहरण
सवैया

सौति की माल गुपाल गरे लखि, बाल कियो मुख रोष उज्यारो।
भौहैं भ्रमी करिकै अधरा, निकरयो रँग नैननि के मग न्यारो॥
त्यो 'कविदेव' निहारि निहोरि, दोऊ कर जोरि परथो पग प्यारो।
पी कों उठाइ कै प्यारी कह्यो, तुमसे कपटीन कौ काहि पत्यारो॥

शब्दार्थ—गरे—गले में। रोष—क्रोध। अधरा—ओष्ठ। नैननि के मग—आँखों की राह। निहारि—देखकर। निहोरि—खुशामद करके। परयो पग—पैरों पर गिर पड़ा। तुमसे......पत्यारो—तुमसे कपटी लोगों का क्या विश्वास?

२—मध्यम मानमोचन
उदाहरण
सवैया

बाल के सङ्ग गुपाल कहूँ, मिस सोत मैं सौति को नाम उठे पढ़ि।
यों सुनिकैं पटु तानि परी तिय, देव कहें इमि मान गयो बढ़ि॥
जागि परी हरि जानी रिसानी सी, सोंहैं प्रतीति करी चित में चढ़ि।
आँसुन सों संताप बुझयो, अरु साँसन सों सब कोप गयो कढ़ि॥

शब्दार्थ—निस—रात। सोत मैं—सोते हुए। पटु तानि परी—वस्त्र ओढ़ के सो गयी। रिसानी क्रोधित। सोहैं करी—शपथ खाने लगे। कोप गयो कढ़ि—क्रोध दूर हो गया।