पृष्ठ:भाषा-भूषण.djvu/४१

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( ११ ) नवलबधू की बदनदुति अरु सकुचत अरविंद । तुही सिरीनिधि धर्मनिधि तुहीं इंद्र अरु इंदु* ॥ ८१॥ [ दीपक] से दीपक निज गुननि से बय॑ इतर इक भाइ । गज मद से नृप तेज से सोभा लहत बनाइ ॥ २ ॥ [ दीपकावृत्ति] दीपक प्रावृति तीनि बिधि मावृति पद की होइ । पुनि है प्रावृति अर्थ की दूजी कहियै सेाइ ॥ ८३ ॥ पद अरु अर्थ दुहूनि को प्रावृति तीजी लेखि । घन बरसै है री सखी निसि बरसै है देखि ॥४॥ फूलै वृक्ष कदंब के केतिक बिकसै प्राहि । मत्त भये हैं मोर अरु चातक मत्त सराहि॥ ८५ ॥ [ प्रतिवस्तूपमा ] प्रतिवस्तूपम समझिये दाऊ समझिये दाऊ वाक्य समान । साभा प्रताप बर सेाभा सूरहि बान ॥८६॥ [रष्टोत मलकार ] प्रलंकार दृष्टांत से लच्छन नाम प्रमान । कांतिमान ससिही बन्यौ तूही कीरतिमान ॥ ८ ॥ [निदर्शना ] कहियै त्रिबिधि निदर्सना पाक्य अर्थ सम दोइ । एक किए पुनि पौर गुन पौर बस्तु में होइ॥ ८८॥ पाठा. चंद।