पृष्ठ:भाषा-भूषण.djvu/५१

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( २१ ) [अर्थान्तरन्यास] बिसेप ते सामान्य द्वन्द तब अर्थान्तरन्यासु । रघुबर के बर भिरि तरे बड़े करें न कहा सु ॥ १५४ ॥ [ विकस्वर ] विकस्वर होत बिसेप जव किरि सामान्य बि सेप । हरि गिरि धारयौ सत्पुरुष भार सह्यो ज्यों सेष ॥ १५ ॥ [प्रौदोक्ति ] प्रौढ़ती उत्कर्ष बिन हतू बर्नन काम । केस प्रमाघस रेनि घन लघन तिमिर सब स्याम ॥ १५६॥* [संभावना ] औ यो होइ तौ यों कहैं संभाधना विचार । बक्ता हातौ सेस जो नौ लहतो गुन पार ॥ १७ ॥ [मिथ्याध्यवसिति] मिथ्याध्यवसिति कहत कछु मिथ्या कल्पन रीति । कर में पारद जौ रहै करै नबोढ़ा प्रीति ॥ १५८ ॥ [ ललित ] ललित कह्यौ कछु चाहिए ताही को प्रतिबिंबु । सेतु बांधि करिहै कहा अब तो उतरयौ अंबु ॥ १५६ ॥

  • पाठा० प्रौढ़-उक्ति उत्कप को करे अहेतुहि हेत ।

जमुना-तीर तमाल सों तेरे बार असेत ।। (प्र. क ) प्रौढ़ उक्ति घरनन घिप अधिकाई अधिकार ॥ के तार ( प्र० ख )