पृष्ठ:भाषा-भूषण.djvu/९८

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१६३-जब किसी के गुण श्रादि का अत्यंत बढ़ाकर वर्णन हो । जैसे, राजन् ! तेरे दान से भिखमंगे भी कल्पतरु हो गए। अन्य लक्षणकारों का मत है कि यह वर्णन अद्भुत और अतथ्य हो । मारती भूषण में लिखा है कि- अद्भुत मिथ्या होइ तहँ अलंकार अत्युक्ति । यह चंद्रालोक के अनुसार है और भापाभूषण का उदाहरण भी कम से कम अद्भुत और मिथ्या अवश्य है । १६४-जब किसी शब्द का सयुक्तिक पर मनमाना अर्थ किया जाय । जैसे, हे उद्धव ! ( कृष्णजी ) कुब्ला के वश में हो गए । ( वे वस्तुत: ) निर्गुण हैं। यहाँ निर्गुण का अर्थ गुणों से रहित अर्थात् म खं से लिया गया है। पर निर्गुण का प्रधान अर्थ है-- जो सत्व, रज और तम तीनों गुणों से परे हो । यहाँ जो दूसरा अर्थ लिया गया है वह मनमाना होते भी युक्तियुक्त है। --जब प्रसिद्ध का निषेध इस प्रकार किया जाय ( कि कुछ विशेष अर्थ निकले ) । जैसे, कृष्णजी के हाथ की यह मुरली नहीं है, कोई बड़ी बलाय है। यहाँ नियंध करके मुरली की इस विशेषता को प्रदर्शित किया है कि उसके राग को सुनकर वे प्रेम से अधीर हो जाती थीं। १९६-जब किसी शब्द के साधारण अर्थ पर विशेष जोर दिया जाय । जैसे, कोयल तभी कोयल है जब ऋतु में वह (अपनी मोठी ) बोली सुनाती है। यहाँ कोयल के साधारण अर्थ पर विशेष जोर दिया गया है। १६७-हेतु अलंकार दो प्रकार का है. (१) जब कारण और कार्य एक साथ होते कहे जायँ । जैसे, मानिनी का मान मिटाने ही को चंद्रमा उदित हुश्रा । .