पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/१०५

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भाषा-विज्ञान मा०फा० अ० फा० घाम सं० अवे० हिंदी धर्म गर्म गर्म धित (हित) दात दात दाद (गर्म भूमि बूमि बूमि बूम विदेशी है) (३) भारोपीय सघोष ज आदि के समान अनेक वर्ण ईरानी में मिलते हैं पर संस्कृत में उनका सर्वथा अभाव है। इसके अतिरिक्त भी अनेक विशेषताएँ ईरानी भाषावर्ग में पाई जाती हैं पर वे अवस्ता में ही अधिक मिलती हैं और अवस्ता तो संस्कृत के इतनी अधिक समान है कि थोड़े ध्वनि-परवर्तनों को छोड़ दें तो दोनों एक ही भाषा प्रतीत होती हैं। अब तो तुलना-मूलक भाषा- विज्ञान, वंशान्वय-शास्त्र धर्म-शास्त्र आदि के अध्ययन ने इन दोनों के एक होने की कल्पना को ठीक मान लिया है। अतः अयस्ता भाषा का संक्षिप्त परिचय और उसका संस्कृत से भेद और ऐक्य जानना प्रत्येक भाषा-विज्ञानी के लिए आवश्यक हो जाता है, क्योंकि इसका महत्त्व ईरान और भारत के लिये ही नहीं, प्रत्युत भारोपीय परिवार मान के लिये है। वाकरनेगल और बारथोलोमी ने इन प्राचीन ईरानी भाषाओं का सुंदर तुलनात्मक अध्ययन किया है। अवेस्ता भारोपीय परिवार के शतम्-वर्ग की प्राचीनतम भाषाओं में से एक है। उसका यह वर्तमान नाम पहलवी अविस्ताक से निकला अवस्ता भाषा का है। उसकी प्राचीन लिपि का कुछ पता नहीं है। अब वह सेसेनियन पहलवी से उत्पन्न दाहिने संक्षिप्त परिचय से बायें को लिखी जानेवाली एक लिपि में लिखी मिलती है। इस भाषा में संस्कृत के समान दो अवस्थाएँ भी पाई जाती हैं—पहली गाथा की अवस्था वैदिक के समान आर्ष है और दूसरी परवर्ती अवेस्ता लौकिक संस्कृत के समान कम आफै मानी जा सकती है। गाथा अवेस्ता में कभी कभी तो चैदिक से भी प्राचीन रूप या उच्चारण मिल जाया करते हैं। सामान्य रूप से गाथा अबस्ता और वैदिक संस्कृत में थोड़े ध्वनि-विकारों को छोड़कर कोई भी भेद नहीं