पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/१०६

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यजतम् मित्रं भाषाओं का वर्गीकरण पाया जाता। अवता का वाक्य सहज ही में वैदिक संस्कृत बन जाता है। जैसे अयस्ता का तं अमवन्तं यजतम सूरं दामोहू शविस्तम् मिथम् यजे जोयान्यो का संस्कृत पाठ इस प्रकार होगा-- तम् अमवंतं शूरं धामसु शविष्ठम् होत्राभ्यः ( अर्थात् मैं उस मिन्न की आहुतियों से पूजा करता हूँ जो ...."शविष्ठ....."है।) अवेस्ता वैदिक भाषा से इतनी अधिक मिलती है कि उसका अध्ययन संस्कृत भाषा-विज्ञान के विद्यार्थी के लिये बड़ा लाभकर होता है; और इसी प्रकार प्राचीन फारसी प्राकृत और पाली से, मध्य फारसी अपभ्रंश से और आधुनिक फारसी आधुनिक हिंदी से बराबरी पर रखी जा सकती है। यह अध्ययन वड़ा रोचक और लाभकर होता है। ग्रे ने अपने Indo Iranian Phonology में इसी प्रकार का तुलनात्मक अध्ययन किया है। भारतवर्ष यूरेशिया खंड में ही अंतर्भूत हो जाता है पर कई ऐतिहासिक और भौगोलिक कारणों से भाषा-विज्ञानी को-विशेषकर भारतवर्ष की भाषाएँ भारतीय भाषा के विद्यार्थी को भारतवर्ष की भाषाओं का विस्तृत विवेचन करना पड़ता है। भारत की भाषाओं ने भाषा-विज्ञान में एक ऐतिहासिक कार्य किया है। इसके अतिरिक्त भारतवर्ष का देश एक पूरा महादेश अथवा महाद्वीप जैसा है। उसमें विभिन्न परिवार की इतनी भाषाएँ और बोलियाँ इकट्ठी हो गई हैं कि उसे एक पृथक भाषा-खंड ही मानना सुविधाजनक और सुंदर होता है। पाँच से अधिक आर्य तथा अनार्य परिवारों की भाषाएँ इस देश में मिलती हैं। दक्खिन के साढ़े चार प्रांतों अर्थात