पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/१०८

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भापाओं का वर्गीकरण CU मुंडा भाषा उस विशाल 'आस्ट्रिक' (अथवा आग्नेय) परिवार की शाखा है जो पूर्व-पश्चिम में मदागास्कर आस्ट्रिक (अथवा श्राग्नेय ) परिवार से लेकर प्रशान्त महासागर के ईस्टर द्वीप तक और उत्तर-दक्षिण में पंजाब से लेकर सुदूर न्यूजीलैंड तक फैला हुआ है। इस आग्नेय परिवार के दो बड़े स्कंध हैं-आग्नेयदेशी (Austro- Asiatic) और आग्नयद्वीपी (Austronesian आस्ट्रोनेशियन)। आग्नेयद्वीपी स्कंध की फिर तीन शाखाएँ हैं-सुवर्णद्वीपी या मलायु- द्वीपी ( Indonesian), पपूवाद्वीपी ( Melaxesian) तथा सागर- द्वीपी ( Polynesian)। इस आग्नेयद्वीपी स्कंध मलय-पाली- नेशियन भाषा-वर्ग भी कहते हैं। आग्नेयद्वीपी-परिवार की मलायुद्वीपी भाषाओं में से केवल मलायु (था मलय ) और सलोन ( Salon ) भारत में बोली जाती हैं । ब्रिटिश वर्मा (ब्रह्मा) की दक्षिणी सीमा पर मलय और मरगुई आर्कीपेलिगो में सलोल बोली जाती है। आग्नेयदेशी स्कंध की भाषाएँ भारत के कई भागों में बोली जाती हैं। प्राचीन काल में इन भाषाओं का केंद्र पूर्वी भारत पर हिंद.चीनी प्रायद्वीप ही था। अब इनका धीरे धीरे लोप सा हो रहा है और जो भाषाएँ इस स्कंध की बची हैं उनको दो शाखाओं में बाँटा जाता है- एक मोन-ख्मेर और दूसरी मुंडा ( मुंड, कोल या शावर)। मोन-ख्मेर शाखा में चार वर्ग हैं--(१) मोन-ख्मेर, (२) पलौंगवा, (३) खासी और (४) निकोबरी । इन सबमें मोन-ख्मेर प्रधान वर्ग कहा जा सकता है । मोन एक मँजी हुई साहित्य-संपन्न भाषा है । एक दिन हिंदी-चीन में मोन-ख्मेर लोगों का राज्य था पर अब उनकी भाषा का व्यवहार ब्रह्मा, स्याम और भारत की कुछ जंगली जातियों में ही पाया जाता है । मोन भाषा वर्मा के तट पर पेगू, वतोन और एम्हट जिलों में, तथा मर्तबान की खाड़ी के चारों ओर, बोली जाती है । ख्मेर भाषा कंबोज के प्राचीन निवासी ख्मेर लोगों की भाषा है । ख्मेर लोग मानी