पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/११०

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भाषाओं का वर्गीकरण ८९ मुंडा बोलियाँ बिलकुल तुर्की के समान प्रत्यय-प्रधान और उपचय-प्रधान होती हैं। मैक्समूलर ने जो बातें अपने ग्रंथ में तुर्की के संबंध में कही हैं वे अक्षरश: मुंडा के संबंध में भी सत्य मानी जा सकती हैं। मुंडा भाषाओं की दूसरी विशेषता अंतिम व्यंजनों में पुश्चात् श्रुति का अभाव है। चीनी अथवा हिंद चीनी भाषाओं के समान पदांत में व्यंजनों का उच्चारण श्रुतिहीन और रुक जानेवाला होता है, वह अंतिम व्यंजन आगे के वर्ण में मिल सा जाता है। लिंग दो होते हैं--स्त्रीलिंग और पुल्लिंग, पर वे व्याकरण के आधार पर नहीं चलते। उनकी व्यवस्था सजीव और निर्जीव के भेद के अनुसार की जाती है। सभी सजीव पदार्थों के लिये पुल्लिंग और निर्जीव पदार्थों के लिये स्त्री- लिंग का प्रयोग किया जाता है । वचन प्राचीन आर्य भाषाओं की भाँति तीन होते हैं। द्विवचन ओर बहुवचन बनाने के लिये संज्ञाओ में पुरुषवाचक सर्वनामों के अन्य-पुरुष के रूप जोड़ दिए जाते हैं। द्विवचन और बहुवचन में उत्तम पुरुषवाचक सर्वनाम के दो दो रूप होते हैं-- एक श्रोता सहित वक्ता का बोध कराने के लिये और दूसरा रूप श्रोता. रहित वक्ता का वोध कराने के लिये। जैसे अले और अबोनझेनों शब्दों का हम' अर्थ होता है पर यदि नौकर से कहा जाय कि हम भोजन करेंगे और 'हम' के लिये अबोन' का प्रयोग किया जाय तो नौकर भी भोजन करनेवालों में समझा जायगा। पर अले केवल कहनेवाले का बोध कराता है । मुंडा क्रियाओं में परप्रत्यय ही नहीं अंत: प्रत्यय भी देखे जाते हैं। मुंडा की सबसे बड़ी विशेषता उसकी वाक्य-रचना है । मुंडा वाक्य-रचना आर्य भाषा की रचना से इतनी भिन्न होती है कि उसमें शब्द-भेद की ठीक ठीक कल्पना करना भी कठिन होता है। मुंडा जातियों और भाषाओं के नामों के संबंध में भी कुछ मत- भेद देखा जाता है। यदि उन जातियों को देखा जाय तो व स्वयं अपने को मनुष्य मात्र कहती हैं और मनुष्य का वाचक एक ही शब्द भिन्न भिन्न मुंडा बोलियों में थोड़े परिवर्तित रूप में देख पड़ता है; जैसे- कोल, कोरा, कोड़ा, कूर-कू (कूर का बहुवचन ), हाड़, हाडको