पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/१२२

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भाषाओं का वर्गीकरण कुई के ठीक उत्तर छत्तीसगढ़ और छोटा नागपुर में ( अर्थात् चेदि-कोशल और बिहार के सीमांत पर) कुरुख लोग रहते हैं। ये ओराँव भी कहे जाते हैं। इनकी भाषा कुरुख अथवा ओराँव भी द्राविड़ से अधिक मिलती-जुलती है । इस चोली में कई शाखाएँ अर्थात् उप- बोलियाँ भी हैं । गंगा के ठीक तट पर राजमहल की पहाड़ियों में रहनेवाली मल्तो जाति की बोली 'मल्तो कुरुख की ही एक शाखा है। विहार और उड़ीसा में कुरुख बोलियों का क्षेत्र मुंडा के क्षेत्र से छोटा नहीं है, पर अव कुरुख पर आर्य और मुंडा बोलियों का प्रभाव दिनों- दिन अधिक पड़ रहा है। राँची के पास के कुछ कुरुख लोगों में मुंडारी का अधिक प्रयोग होने लगा है। गोंडी, कुई, कुरुख, मल्तो आदि के समान इस वर्ग की एक बोली कोलामी है । वह पश्चिमी वरार में बोली जाती है। उसका तेलुगु से अधिक साम्य है; उस पर मध्यभारत की आर्य भीली बोलियों का बड़ा प्रभार पड़ा है । टोडा की भाँति वह भी भीली के दवाव से मर रही है। सुदूर कलात में . बाहुई लोग एक द्राविड़ वोली बोलते हैं । इनमें से अनेक ने बलूची अथवा सिंधी को अपना लिया है। यहाँ के सभी स्त्री-पुरुष प्राय: दुभापिए होते हैं। कभी कभी स्त्री सिंधी बोलती हैं और पति बाहुई । यहाँ किस प्रकार अन्य वर्गीय भाषाओं के बीच में एक द्राविड़ भापा जीवित रह सकी, यह एक आश्चर्य की बात है आंध्र वर्ग में केवल आंध्र अथवा तेलुगु भाषा है और अनेक बोलियाँ हैं । वास्तव में दक्षिण-पूर्व के विशाल क्षेत्र में केवल तेलुगु भाषा बोली जाती है। उसमें कोई विभाषा नहीं अध्रि वर्ग है। उसी भाषा को कई जातियाँ अथवा विदेशी व्यापारी थोड़ा विकृत करके चोलते हैं पर इससे भाषा का कुछ नहीं विगड़ता । विभाषाएँ तो तव वनती हैं जब प्रांतीय भेद के कारण शिष्ट और सभ्य लोग भाषा में कुछ उच्चारण और शब्द-भांडार का भेद . बाहुई वर्ग 1 फा०७