पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/१२८

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१०३. भाषाओं का वर्गीकरण (क) उदीच्य (उत्तरी वर्ग)-१-सिंधी, २-लहँदा, ३-पंजावी । (ख) प्रतीच्य (पश्चिमी वर्ग)-४-गुजराती, ५-राजस्थानी ।। (ग) मध्यदेशीय (विचला वर्ग)-६-पश्चिमी हिंदी। (घ) प्राच्य (पूर्वी वर्ग)---पूर्वी हिंदी, ८-विहारी, ९-- उड़िया, १०-बैंगला, ११-आसामी । (3) दाक्षिणात्य ( दक्षिणी वर्ग)-१२-मराठी। पहाड़ी बोलियों को डा० चैटर्जी ने भी राजस्थानी का रूपांतर माना है, पर उनको निश्चित रूप से किसी भी वर्ग में रख सकना सहज नहीं है। उनका एक अलग वर्ग मानना ही ठीक हो सकता है। इस प्रकार हम प्रियर्सन और चैटर्जी के नाम से दो पक्षों का उल्लेख कर रहे हैं -एक अंतरंग और बहिरंग के भेद को ठीक माननेवाला और दूसरा इसका विरोधी । पर साधारण विद्यार्थी के लिये चैटर्जी का वर्गीकरण स्वाभाविक और सरल ज्ञात होता है; क्योंकि प्राचीन काल से आज तक मध्यदेश की ही भाषा सर्वप्रधान राष्ट्रभाषा होती आई है, अत: उसे अर्थात् 'पश्चिमी हिंदी (अथवा केवल 'हिंदी') को केंद्र मानकर उसके चारों ओर के चार भाषा-बों की परीक्षा करना सुविधाजनक होता है । इसी से स्वयं ग्रियर्सन ने अपने अन्य लेखों में सर्वप्रथम हिंदी को मध्यदेशीय वर्ग मानकर वर्णन किया है और दूसरे वर्ग में उन भापात्रों को रखा है जो इस मध्यदेशीय भाषा (हिंदी) और बहिरंग भाषाओं के बीच में अर्थात् सीमांत पर पड़ती हैं। इस प्रकार उन्होंने नीचे लिखे तीन भाग किए हैं.- (क) मध्यदेशीय भाषा १-हिंदी। (ख) अंतर्वर्ती अथवा मध्यग भाषाएँ । (अ) मध्यदेशीय भाषा से विशेष धनिष्ठतावाली--२-पंजावी, ३-राजस्थानी, ४-गुजराती, ५-पूर्वी पहाड़ी, खसकुरा, अथवा नेपाली, ६-केंद्रस्थ पहाड़ी, ७-पश्चि (आ)वहिरङ्ग भाषाओं से अधिक संवद्ध-~-८-पूर्वी हिंदी (ग) बहिरंग भाषाएँ पहाड़ी।