पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/१३०

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भाषाओं का वर्गीकरण १०५ दक्षिण-पूरब में रायपुर तथा दक्षिण-पश्चिम में खंडवा तक पहुँचती है । इस भूमिभाग के निवासियों के साहित्य, पत्र-पत्रिका, शिक्षादीक्षा, वोलचाल आदि की भाषा हिंदी है। इस अर्थ में बिहारी ( भोजपुरी, मगही और मैथिली ), राजस्थानी ( मारवाड़ी, मेवाती आदि), पूर्वी हिंदी (अवधी, क्षेली और छत्तीसगढ़ी) पहाड़ी आदि सभी हिंदी की विसापाएँ मानी जा सकती हैं। इसके बोलनेवालों की संख्या लगभग ११ करोड़ है। यह हिंदी का प्रचलित अर्थ है। भापा-शास्त्रीय अर्थ इससे कुछ भिन्न और संकुचित होता है। भाषा-शास्त्र की दृष्टि से इस विशाल भूमि-भाग अथवा हिंदी खंड में तीन-चार भापाएँ मानी जाती हैं। राजस्थान की राजस्थानी, विहार तथा वनारस-गोरखपुर कमिश्नरी की विहारी, हिंदी का शास्त्रीय अर्थ उत्तर में पहाड़ों की पहाड़ी और अवध तथा छत्तीसगढ़ की पूर्वी हिंदी आदि पृथक् भाषाएँ मानी जाती हैं। इस प्रकार हिंदी केवल उस खंड की भापा को कह सकते हैं जिसे माचीन काल में मध्यदेश अथवा अंतर्वेद कहते थे। अत: यदि आगरा को हिंदी का केंद्र मानें तो उत्तर में हिमालय की तराई तक और दक्षिण में नर्मदा की घाटी तक, पूर्व में कानपुर तक और पश्चिम में दिल्ली के भी आगे तक हिंदी का क्षेत्र माना जाता है। इसके पश्चिम में पंजाबी और राजस्थानी वोली जाती हैं और पूरव में पूर्वी हिंदी । कुछ लोग हिंदी के दो भेद मानते हैं—पश्चिमी हिंदी और पूर्वी हिंदी। पर आधुनिक विद्वान् पश्चिमी हिंदी को ही हिंदी कहना शास्त्रीय समझते हैं। अत: भाषा-बैज्ञानिक-विवेचन में पूर्वी हिंदी भी 'हिंदी' से पृथक् भापा मानी जाती है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी देखें तो हिंदी शौरसेनी की वंशज है और पूर्वी हिंदी अर्धमागधी की। इसी से प्रियर्सन, चटर्जी आदि ने हिंदी शब्द का पश्चिमी हिंदी के ही अर्थ में व्यवहार किया है और ब्रज, कन्नौजी, बुंदेली, वाँगरू और खड़ी बोली (हिंदुस्तानी ) को हिंदी को विभाया माना है-अवधी, छत्तीसगढ़ी आदि को नहीं। अभी हिंदी लेखकों के अतिरिक्त अँगरेजी