पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/१३३

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साथ भाषा-विज्ञान मुसलमानों की मांग पूरी की है, उसी प्रकार अँगरेजी शासन और शिक्षा की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिये हिंदुस्तानी चेष्टा कर रही है। वास्तव में 'हिंदुस्तानी नाम के जन्मदाता अँगरेज अफसर हैं। वे जिस साधारण बोली में साधारण लोगों से--साधारण पढ़े और वे-पढ़े दोनों ढंग के लोगों से बातचीत और व्यवहार करते थे उसे हिंदुस्तानी कहने लगे। जब हिंदी और उर्दू साहित्य-सेवा में विशेष लग गई तब जो बोली जनता में बच रही है उसे हिंदुस्तानी कहा जाने लगा। यदि हम चाहें तो हिंदुस्तानी को चाहे हिंदी का, चाई गई का बोलचाल का रूप कह सकते हैं। अत: हिंदी, उर्दू हिंदुस्तानी तीनों ही खड़ी बोली के रूपांतर मात्र हैं। ही हमें यह भी स्मरण रखना चाहिए कि शास्त्रों में खड़ी बोली का अधिक प्रयोग एक प्रांतीय बोली के अर्थ में ही होता है। बाँगल-हिंदी की दूसरी विभाषा गल बोली है। यह बाँगर अर्थात्, पंजाब के दक्षिण-पूर्वी भाग की बोली है । देहली, करनाल, रोहतक, हिसार, पटियाला, नाभा और मीद आदि की ग्रामीण बोली यही बाँगर है। यह पंजाबी, राजस्थानी और खड़ी बोली तीनों की सिचदी है। घागस बोलनेवालों की संख्या वाईस लाख है। चाँगम् बोली को पश्चिमी सीमा पर सरस्वती नदी बहती है। पानीपत और कुम्नेत्र के प्रसिद्ध मैदान इन्नी बोली की सीमा के अंदर पढ़ते हैं। ब्रजभाषा-अनमंडल में ब्रजभाषा बोली जाती है। इसका विशुद्ध रूप बाज भी मथुरा, आगग, अलीगढ़ तथा धौलपुर में बोला जाता है। इसके बोलनेवालों की संख्या लगभग ७९ लाख है। प्रजभाषा में हिंदी का तना बड़ा और सुंदर माहित्य लिखा गया है कि उस बोली प्रथया विभाग न क :फर भाषा का नाम मिल गया था, पर पान नो वा हिंदी पी परिभाषा मात्र की जा सकती है। प्रान भी अनेक कवि पुगनी "मरामारा में नहाय निम्मत है। - कनय को प्राव की बोली मनोनी है। इसमें भी माम मिलना, परया भी नामापा काशी माहित्य माग