पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/१३४

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भाषाओं का वर्गीकरण १०९ जाता है, क्योंकि साहित्यिक कन्नौजी और ब्रज में कोई विशेष अंतर नहीं लक्षित होता। बुंदेली यह बुंदेलखंड की भापा है और ब्रजभापा के क्षेत्र के दक्षिण में बोली जाती है । शुद्ध रूप में यह झाँसी, जालौन, हमीरपुर, ग्वालियर, भोपाल, ओड़छा, सागैर, नरसिंहपुर, सिवनी तथा होशंगाबाद में वोली जाती है। इसके कई मिश्रित रूप दतिया, पन्ना, चरखारी, दमोह, बालाघाट तथा छिंदवाड़ा के कुछ भागों में पाए जाते हैं । बुंदेली के बोलनेवाले लगभग ६९ लाख हैं । मध्यकाल में बुंदेलखंड में अच्छे कवि हैं पर उनकी भापा ब्रज ही रही है। उनकी ब्रजभाषा पर कभी कभी बुंदेली की अच्छी छाप देख पड़ती है। 'मध्यवर्ती' कहने का यही अभिप्राय है कि ये भाषाएँ मध्यदेशी भाषा और बहिरंग भाषाओं के बीच की कड़ी हैं अत: उनमें दोनों के मध्यवर्ती भाषाएँ लक्षण मिलते हैं। मध्यदेश के पश्चिम की भाषाओं में मध्यदेशी लक्षण अधिक मिलते हैं पर उसके पूर्व की पूर्वी हिंदी में बहिरंग वर्ग के इतने अधिक लक्षण मिलते हैं कि उसे बहिरंग वर्ग की ही भाषा कहा जा सकता है। जैसे पीछे तीसरे ढंग के वर्गीकरण में स्पष्ट हो गया है, ये मध्यवर्ती .भापाएँ सात हैं--पंजावी, राजस्थानी, गुजराती, पूर्वी पहाड़ी, केंद्रीय पहाड़ी, पश्चिमी पहाड़ी और पूर्वी हिंदी । ये सातों भाषाएँ हिंदी को- मध्यदेश की भाषा को घेरे हुए हैं। साहित्यिक और राष्ट्रीय दृष्टि से ये सब हिंदी की विभाषाएँ ( अथवा उपभाषाएँ ) मानी जा सकती हैं, पर भापाशास्त्र भी दृष्टि से ये स्वतंत्र - भाषाएँ मानी जाती हैं। इनमें पहली छ: में मध्यदेशी लक्षण अधिक मिलते हैं पर पूर्वी हिंदी में बहिरंग लक्षण ही प्रधान हैं। पूरे पंजाब प्रांत की भाषा को 'पंजावी' कह सकते हैं, इसी से कई लेखक पश्चिमी पंजावी और पूर्वी पंजावी दो भेद करते हैं,. पर भापा-शास्त्री प्रायः पूर्वी पंजाबी को पंजाबी कहते हैं। अतः हम भी पंजाबी का इसी अर्थ में व्यवहार करेंगे । पश्चिमी पंजाबी को.