पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/१३५

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११० भाषा-विज्ञान लहँदा कहते हैं । अमृतसर के आसपास की भाषा शुद्ध पंजाबी मानी जाती है । यद्यपि स्थानीय बोलियों में भेद मिलता है पर सच्ची विभाया डोनी ही है । जंचू रियासत और काँगड़ा जिले पंजाबी में डोरी बोली जाती है। इसकी लिपि तकरी अथवा टकरी है। टका जाति से इसका संबंध जोड़ा जाता है। पंजाबी में थोड़ा माहित्य भी है। पंजावी ही एक ऐसी मध्यदेश से संबंद्ध भाषा है जिसमें संस्कृत और फारसी शब्दों की भरती नहीं है। इस भाषा और वैदिक संस्कृत-सुलभ रस और सुंदर पुरुपत्व देख पड़ता है। इस भाषा में इसके बोलनेवाले बलिष्ठ और कठोर किसानों की कठोरता और सादगी मिलती है । ग्रियर्सन ने लिखा है कि पंजाबी ती एक ऐसी आधुनिक हिंदी आर्य भाषा है जिसमें वैदिक अथवा तिव्यत-चीनी भाषा के समान स्वर पाये जाने हैं। पंजाबी के दक्षिण में राजस्थानी है। जिस प्रकार हिंदी का उत्तर-पश्चिम की ओर फैला हुया रूप पंजावी है, उसी प्रकार हिंदी का दक्षिण-पश्चिमी विस्तार राजस्थानी गरपानी और गुजराती है। इसी विस्तार का अंतिम भाग गुजराती है। राजस्थानी और गुजराती वास्तव में इतनी परस्पर संबंद्ध है कि दोनों को एक हो भापा की दो विभापार मानना भी अनुचित न पर अाजकल ये दो स्वतंत्र भाषाएँ मानी जाती है । दोनों में स्वतंत्र साहित्य की भी रचना हो रही है। राजस्थानी को मेवाती, मालवी, मारवादी और जयपुरी श्रादि अनेक विभाषाएँ पर गुजराती में कोई निश्चिन विभाषा नहीं है। उत्तर और भिमा की गुजगनी की बोली में थोला स्थानीय भेद पाया जाता है। गारगली और जयपुगे से मिलनी-जुलती पहाडी भागार हिंदी सर में मिलती हैं। पूर्वी पहाली नेपाल की प्रधान भाषा है उनी मे वा नेपाली भी कही जाती है। ही परवरिया प्रथा पर कुरा भी कहते हैं । मा गामगे मन में की जाती । प्रमका नाहित्य मया होगा।