पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/१३६

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१११ 1 भाषाओं का वर्गीकरण आधुनिक है। केंद्रवर्ती पहाड़ी गढ़वाल रियासत तथा कुमाऊँ और गढ़वाल जिलों में बोली जाती है । इसकी दो विभाषाएँ हैं- कुमाउनी और गढ़वाली । इस भाषा में भी कुछ पुस्तके थोड़े दिन हुए, लिखी गई हैं। यह भी नागरी अक्षरों में लिखी जाती हैं। पश्चिमी पहाड़ी बहुत, सी पहाड़ी बोलियों के समूह का नाम है। उसकी कोई प्रधान विभाषा नहीं है और न उसमें कोई उल्लेखनीय साहित्य है कुछ ग्राम-गीत भर मिलते हैं । इसका क्षेत्र बहुत विस्तृत है। संयुक्तप्रांत के जौनसार-वावर से लेकर पंजाब प्रान्त में सिरमौर रियासत, शिमला पहाड़ी, कुडली, मंडी, चंबा होते हुए पश्चिम में कशमीर की भदरवार जागीर तक पश्चिमी पहाड़ी वोलियाँ फैली हुई हैं। इसमें जौनसारी, कुडली, चंबाली आदि अनेक विभाषाएँ हैं। ये टकरी अथवा तक्करी लिपि में लिखी जाती हैं। इसे हिंदी का पूर्वी विस्तार कह सकते हैं, पर इस भाषा में इतने चहिरंग भाषाओं के लक्षण मिलते हैं कि इसे अर्ध-विहारी भी कहा जा सकता है। यही एक ऐसी मध्यवर्ती भाषा है पूर्वी हिंदी जिसमें बहिरंग भाषाओं के अधिक लक्षण मिलते । यह हिंदी और बिहारी के मध्य की भाषा है। इसको तीन विभापाएँ-- हैं-अवधी, बघेली और छत्तीसगढी । अवधी को हो कोशली .या बैसवाड़ी भी कहते हैं। वास्तव में दक्षिण-पश्चिमी अवधी ही बैसवाड़ी कही जाती है । पूर्वी हिंदी नागरी के अतिरिक्त कैथी में भी कभी कभी लिखी मिलती है । इस भापा के कवि हिंदी-साहित्य के अमर कवि हैं जैसे तुलसी और जायसी । इनका सबसे बड़ा भेदक यह है कि मध्यदेश की मापा अर्थात् हिंदी की अपेक्षा ये सब अधिक संहिति-प्रधान हैं। हिंदी की रचना सर्वथा व्यवहित है, पर इन बहिरंग भाषाओं में बहिरंग भाषाएँ संहित रचना भी मिलती है। वे व्यवहिति से संहिति की ओर जा रही हैं । मध्यवर्ती भाषाओं में केवल पूर्वी हिंदी कुछ संहित पाई जाती है ।