पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/१३७

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1 ११२ भापा-विज्ञान यह पश्चिम पंजाब की भाषा है इसी से कुछ लोग इसे पश्चिमी पंजाबी भी कहा करते हैं। यह जटकी, अच्छी, हिंदकी, डिलाही यादि नामों से पुकारी जाती है। कुछ विद्वान् इसे लहँदा लहँदी भी कहते हैं पर लहँदा तो संज्ञा है अतः उसका स्त्रीलिंग नहीं हो सकता । लहँदा एक नया नाम ही चल पड़ा है, अब उसमें उस अर्थ के द्योतन की शक्ति श्रा गई है लहँदा को चार विभाषाएँ हैं-(१) एक केन्द्रीय लहँदा जो नमक की पहाड़ी के दक्षिण प्रदेश में वोली जाती है और जो टकमाली मानी जाती है, (२) दूसरी दक्षिणी अथवा मुल्तानी जो मुल्तान के आस-पास बोली जाती है, (३) तीसरी उत्तर-पूर्वी अथवा पोठवारी और (४) चौथी उत्तर-पश्चिमी अर्थात् धन्नी । यह उत्तर में हजारा जिले तक पाई जाती है। लहँदा में साधारण गीतों के अतिरिक्त कोई साहित्य नहीं है । इसकी अपनी लिपि लंडा है। यह दूसरी बहिरंग भापा है, और सिंध नदी के दोनों तटों पर वसे हुए सिंध देश की बोली है । इसमें पाँच विभापाएँ हैं—बिचोली सिरैकी, लारी थरेली और कच्छी । विचोली सिधी मध्य सिंध की टकसाली भाया है। सिंधी के उत्तर में लहँदा, दक्षिण में गुजराती और पूर्व में राजस्थानी है। सिंधी का भी साहित्य छोटा सा है । इसकी भी लिपि लंडा है, पर गुरुमुखी और नागरी का भी प्राय: व्यवहार होता है। कच्छी घोली के दक्षिण में गुजराती है। यद्यपि उसका क्षेत्र पहले बहिरंग भापा का क्षेत्र रह चुका है पर गुजराती मध्यवर्ती भाषा है अत: यहाँ बहिरंग भापा की शृंखला टूट मराठी सी गई है। इसके बाद गुजराती के दक्षिण में मराठी आती है यही दक्षिणी बहिरंग भाषा है। यह पश्चिमी घाट और अरब समुद्र के मध्य की भाषा है । पूना की भाषा ही टकसाली मानी जाती है । पर मराठी बरार में से होते हुए बस्तर तक बोली जाती है। इसके