पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/१३८

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भाषाओं का वर्गीकरण ११३ दक्षिण में द्राविड़ भाषाएँ बोली जाती हैं। पूर्व में मराठी अपनी पड़ो- सिन छत्तीसगढ़ी से मिलती है। मराठी की तीन विभापाएँ हैं। पूना के आसपास की टकसाली बोली देशी मराठी कहलाती है। यही थोड़े भेद से उत्तर कोकण में बोली जाती है, इससे इसे कोंकणी भी कहते हैं । पर कोंकणी एक दूसरी मराठी वोली का नाम है जो दक्षिणी कोंकण में बोली जाती है। पारिभाषिक अर्थ में दक्षिणी कोंकणी ही कोंकणी मानी जाती है। मराठी की तीसरी विभाषा बरार की वरारी है । हल्बी मराठी और द्राविड़ की खिचड़ी बोली है जो वस्तर में बोली जाती है। मराठी भाषा में तद्धितांत, नामधातु आदि शब्दों का व्यवहार विशेष रूप से होता है। इसमें वैदिक स्वर के भी कुछ चिह्न मिलते हैं। पूर्व की ओर आने पर सबसे पहली बहिरंग भापा बिहारी मिलती है। बिहारी केवल विहार में ही नहीं, संयुक्तप्रांत के पूर्वी भाग अर्थात् विहारी गोरखपुर-बनारस कमिश्नरियों से लेकर पूरे विहार प्रांत में तथा छोटा नागपुर में भी बोली जाती है । यह पूर्वी हिंदी के समान हिंदी की चचेरी बहिन मानी जा सकती है । इसकी तीन विभाषाएँ हैं--(१) मैथिलि, जो गंगा के उत्तर दरभंगा के आसपास बोली जाती है। (२) मगही जिसके केंद्र पटना और गया हैं, (३) भोजपुरी, जो गोरखपुर और वनारस कमिश्नरियों से लेकर विहार प्रांत के आरा (शाहाबाद), चंपारन और सारन जिलों में बोली जाती है। यह भोजपुरी अपने वर्ग की ही मैथिली-मगही से इत्तनी भिन्न होती है कि चैटर्जी भोजपुरी को एक पृथक वर्ग में ही रखना उचित समझते हैं। विहार में तीन लिपियाँ प्रचलित हैं। छपाई नागरी लिपि में होती है। साधारण व्यवहार में कैथी चलती है और कुछ मैथिलों में मैथिली लिपि चलती है। फ०८