पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/१४०

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चौथा प्रकरण ध्वनि और ध्वनि-विकार सामान्य परिभापा के अनुसार भाषा ध्वनि-संकेतों का समूह मात्र है। इसी से ध्वनि में वर्ण, शब्द और भाषा सभी का अंतर्भाव हो जाता है। ध्वनि का यह बड़ा व्यापक अर्थ है, पर सामान्य विद्यार्थी वर्ण के लिये ध्वनि का व्यवहार करता है और यही अर्थ हिंदी-भापा-शास्त्रियों द्वारा भी स्वीकृत हुआ है। इतना संकुचित अर्थ लेने पर भी ध्वनि शब्द का व्यवहार कई भिन्न भिन्न अर्थों में होता है । ध्वनि से ध्वनि-मात्र, भापण-ध्वनि और वर्ण अर्थात् ध्वनि-सामान्य तीनों का अर्थ लिया जाता है । वर्ण का सामान्य अर्थ वही है जो 'वर्णमाला' शब्द में वर्ण का अर्थ समझा जाता है। पर भापण-ध्वनि और ध्वनि-मात्र का व्यवहार सर्वथा पारिभापिक अर्थ में ही होता है। भापणावयवों द्वारा उत्पन्न निश्चित श्रावण-गुण (अर्थात् श्रावण) प्रत्यक्ष ) वाली ध्वनि भापण-ध्वनि कही जाती है। सिद्ध भाषण-ध्वनि में कोई भेद अथवा अंतर नहीं हो सकता। किसी भी गुण के कारण यदि ध्वनि में किंचित् भी विकार उत्पन्न होता है तो वह विकृत-ध्वनि एक दूसरी ही भाषण-ध्वनि कही जाती है । इससे परीक्षा द्वारा जो भाषण-ध्वनि का रूप और गुण निश्चित हो जाता है वह स्थिर और सिद्ध हो जाता है। कई भाषाओं में इस प्रकार की भापरण-ध्वनि बहुत अधिक होती है। पर उन सभी के लिये पृथक् पृथक न तो लिपि-संकेत ही होते हैं और न उनका होना अत्यावश्यक ही समझा जाता है, क्योंकि कई ध्वनियाँ संबद्ध भापण में विशेष स्थान में ही प्रयुक्त होती हैं और उनका ११५ - .