पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/१४२

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ध्वनि और ध्वनि-विकार के भापणावग्रवों में भेद होने से तथा भिन्न भिन्न स्थलों में प्रयुक्त होने से अनेक भाषण-ध्वनियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। यद्यपि साधारण श्रोता का कान इन सूक्ष्म भेदों का भेद नहीं कर पाता तथापि वैज्ञानिक परीक्षा उन सब ध्वनियों को भिन्न मानती है, पर व्यवहार में ध्वनि-मात्र ही स्पष्ट रहती हैं। अतः संवृत अ के लिये केवल एक चिह्न रख लिया जाता हैं । अँगरेजी का एक उदाहरण लें तो कील और काल (keel and call) में एक ही क ध्वनि-मात्र (IK-phoneme ) है, पर भाषण-ध्वनि दो भिन्न भिन्न हैं । कील में जो क ध्वनि है वह ई के पूर्व में आई है, वहाँ काल वाली क ध्वनि कभी नहीं आ सकती। इसी प्रकार किंग और क्वीन (king और queen) में वही एक क धनि-मात्र है। पर पहले में क तालव्य सा है और दूसरे में शुद्ध कंध्य । और स्पष्ट करने के लिये हम बँगला की न और ह ध्वनि-मात्रों को लेंगे। बैंगला को एक न-ध्वनि-मात्र के प्रयोगानुसार भाषण के चार भेद हो जाते हैं पहला 'न' वयं माना जाता है। पर त और द के पूर्व में वही न् सर्वथा दंत्य हो जाता है। ट और ड के पूर्व में ईपत् मूर्धन्य हो जाता है और च तथा ज के पूर्व में ईषत् तालव्य । इन सब मेदों में भी एक एकता है और उसे ही ध्वनि-मात्र कहते हैं और उस. सामान्य-ध्वनि के लिये एक संकेत भी बना लिया गया है । भिन्न भिन्न स्थलों में न की परवर्ती ध्वनियों से ही न का सूक्ष्म भेद प्रकट हो जाता है। इसी प्रकार फ और भ में एक ही ह ध्वनि का मिश्रण सुन पड़ता पर वास्तव में फ में श्वास और अघोप ह है और भ में नाद और घोपह है। आगे हम ध्वनि और वर्ण का पर्याय के समान और भापण-ध्वनि और ध्वनि-मात्र का पारिभापिक अर्थ में प्रयोग करेंगे। भापा की ध्वनियों का अध्ययन इतना महत्त्वपूर्ण है और आजकल उसका इतना विस्तार हो गया है कि उसके दो विभाग कर दिए गए हैं-एक ध्वनि-शिक्षा और दूसरा ध्वनि-विचार अथवा ध्वन्यालोचन । भापण-ध्वनि का संपूर्ण विज्ञान ध्वनि-विचार में आता है। उसमें ध्वनि