पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/१४६

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६ स ध्वनि और ध्वनि-विकार ततियोMAIL: उ० में स्थिर स्वर-तंत्रियाँ दो होठों के समान होती हैं। उनके बीच के अवकाश को काकल ( अथवा ग्लॉटिस) कहते हैं। । श्वास और नाद ये स्वर-संत्रियाँ रवर की भाँति स्थिति-स्थापक होती हैं इसी से कभी वे एक-दूसरी से अलग रहती हैं और कभी इतनी मिल जाती हैं कि हवा का निकलना असंभव हो जाता है । जव ये तंत्रियाँ परस्पर मिली रहती हैं और हवा धक्का देकर उनके बीच में से बाहर निकलती है, तव जो ध्वनि उत्पन्न होती है वह 'नाद' कही जाती है। जब तंत्रियाँ एक-दूसरे से दूर रहती हैं और हवा उनमें से होकर बाहर निकलती है तब जो ध्वनि उत्पन्न होती है वह 'श्वास' कहलाती है। काकल की इन दोनों से भिन्न कई अवस्थाएँ होती हैं जिनमें फुस्फुसाहटवाली ध्वनि उत्पन्न होती है। इन्हें 'जपित', 'जाप' अथवा 'उपांशु ध्वनि' कहते हैं। व्यवहार में आनेवाली प्रत्येक भाषण-ध्वनि 'श्वास' अथवा 'नाद' होती है। श्वासवाली ध्वनि श्वास' और 'नाद' वाली ध्वनि 'नाद' कहलाती है । पर जब हम किसी के कान में कुछ कहते हैं तो नाद- ध्वनियाँ अपित हो जाती हैं और श्वास' ज्यों की त्यों रहती है । जपित ध्वनियों का व्यवहार में अधिक प्रयोग न होने से यहाँ उनका विशेष विवेचन आवश्यक नहीं है । प, क, स आदि ध्वनियाँ 'श्वास' हैं। व, ग, ज आदि इन्हीं की समकक्ष नाद-बनियाँ हैं। स्वर तो सभी नाद होते हैं । ह' भी हिंदी और संस्कृत में नाद होता है पर अँगरेजी ह (h) शुद्ध श्वास है । यही ह जब ख, छ,ठ आदि श्वास वों में पाया जाता है तव वह हिंदी में भी श्वासमय माना जाता है। आजकल के कई विद्वान् श्वास-वों को कठोर और नाद-वर्ण को कोमल कहते हैं, क्योंकि नाद-वणों के उच्चारण में स्वर-तंत्रियों के बंद रहने से एक प्रकार का कंपन होता है और ध्वनि गंभीर तथा कोमल सुन पड़ती है। काफल में स्वर-तंत्रियों की स्थिति के अनुसार ध्वनियों का श्वास और नाद में भेद किया जाता है और वे धनियाँ मुख से किस प्रकार