पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/१५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१२८ भाषा-विज्ञान करण करना सहज और लाभकर होता है । सुस्पष्ट स्वरों की उच्चारण- स्थिति पर विचार करने से जिह्वा की तीन प्रधान अवस्थाएँ ध्यान में आती हैं-एक सबसे आगे की ऊँची, दूसरी सबसे पीछे की ऊँची और एक बीच की सबसे नीची। यदि श्रा को जीभ की सबसे नीची अवस्था मान लें तो जीभ ई के उच्चारण में आगे की ओर ऊँचे उठती है और के उच्चारण में पीछे की ओर ऊँचे उठती है) चित्र २ के ई, ऊ और आ चित्र सं० २ को मिलाकर यदि एक त्रिकोण जिह्वा की अवस्थाएँ बनाया जाय तो जिसं स्वर के उच्चारण करने में जीभ स्वर-त्रिकोण की दाहिनी ओर पड़े वह पश्च (पिछला ) स्वर, जिस स्वर के उच्चारण करने में जीभ बाई ओर पड़े वह अन ( अगला) और जिसके उच्चारण करने में इस त्रिकोण के भीतर पड़े वह मिश्न अथवा मध्य स्वर कहलाता है । (इस प्रकार जिह्वा उच्चारण के समय कहाँ रहती है इस विचार से स्वरों के पश्च अग्र, मिश्र ( मध्य ) और पश्च तीन वर्ग किए... जाते हैं। यह जीभ की आड़ी स्थिति का विचार हुआ; और यदि जीभ की खड़ी स्थिति का विचार करें तो दूसरे प्रकार से वर्गीकरण चित्र सं०३ किया जा सकता है । जिस स्वर के उच्चारण में जीभ बिना किसी प्रकार की रगड़ खाए यथासंभव ऊँची उठ जाती है उस स्वर को संवृत (बंद अथवा मुँदा) कहते हैं और जिस स्वर के लिये जीभ जितना हो सकता है उतना ॐ मध्य