पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/१५७

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१३२ भाषा-विज्ञान समुदाय को कहते हैं जो एक आवात अथवा झटके में बोला जाता है। अत: 'अक्षरांग' पद का व्यवहार उन व्यंजनों अक्षर और अक्षरांग के लिये होता है जो स्वर के साथ एक झटके में बोले जाते हैं। उस ध्वनि-समुदाय में एक एक स्वर अथवा स्वर-सहश व्यंजन अवश्य रहना चाहिए । उसी स्वर अथवा स्वरवत् व्यंजन के पूर्वांग अथवा परांग बनकर छान्य वर्ण रहते हैं । इस प्रकार एक अक्षर में एक अथवा अनेक वर्ण हो सकते हैं । जैसे पत् अथवा चट् शब्द में एक ही अक्षर है और उस अक्षर में तीन वर्ण हैं-एक स्वर और दो व्यंजन । इन तीनों में आधार-स्वरूप स्वर है; इसी से स्वर ही अक्षर कहा जाता है । शास्त्रीय भाषा में ऐसे स्वर को आक्षरिक (Syllabic) कहते हैं और उसके साथ उच्चरित होनेवाले पूरे ध्वनि- समूह को अक्षर कहते हैं। जब एक स्वर एक झटके में बोला जाता है तब वह मेव स्वर अथवा समानाक्षर कहलाता है, पर जब दो अथवा दो से अधिक स्वर एक ही झटके में बोले जाते हैं तब वे मिलकर संध्यक्षार अथवा एक संयुक्त स्वर अथवा संध्यक्षर को जन्म देते संयुक्त स्वर हैं। अ, आ, ए आदि जिन १९ स्वरों का हम पीछे वर्णन कर चुके हैं वे समानाक्षर अर्थात् मेय स्वर ही थे। संस्कृत में ए ओ संध्यक्षर माने गए हैं पर हिंदी में वे दीर्घ समानाक्षर ही माने जाते हैं; क्योंकि उनके उच्चारण में दो अक्षरों की प्रतीति नहीं होती; ए अथवा ओ का उच्चारण एक अक्षर के समान ही होता है । हिंदी में ऐ और औ संध्यक्षर हैं: जैसे-ऐसा, और, सौ आदि । हम देख चुके हैं कि एक ध्वनि के उच्चारण करने में अवयव- विशेष एक विशेप प्रकार का यत्न करते हैं अत: जब एक ध्वनि के वाद दूसरी ध्वनि का उच्चारण किया जाता है तब उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर थाना पड़ता है । उच्चारण-स्थानों की बनावट एक समतल नली के समान नहीं है जिससे हवा वरावर प्रवाहित होकर ध्वनि