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१४० भाषा-विज्ञान कैच का हमें वैज्ञानिक अध्ययन करना है तो ग्रीक और लैटिन का उच्चारण जानना चाहिए: यदि हमें हिंदी, मराठी, बॅगला आदि का अच्छा अध्ययन करना है तो वैदिक, संस्कृत, प्राकृत आदि के उच्चारण का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए । इन प्राचीन भाषाओं के उच्चारण का पता कई ढंगों से लगता है । जैसे ग्रीक और लैटिन का प्राचीन उच्चारण जानने के लिए विद्वान् प्रायः निम्नलिखित बातों की खोज करते हैं- (१) डायोनीसीअस (३० ई० पू० ) और व्हारो (७० ई० पू०) के समान लेखकों के ग्रंथों में ध्वनियों का वर्णन और विवेचन । (२). व्यक्ति-वाचक नामों का प्रत्यक्षरीकरण भी उच्चारण का ज्ञापक होता है। (३) कुछ साहित्यिक श्लेष आदि के प्रयोगों पर। (४) शिलालेखों के लेखों को परस्पर तुलना से। (५) उन्हीं भाषाओं के जीवन-काल में ही वर्ण-विन्यास में परिवर्तन हो जाते हैं उनके आधार पर। (६) आजकल की आधुनिक श्रीक और इटाली, स्पेनी आदि रोमांस भाषाओं के प्रत्यक्ष उम्पारण के आधार पर। (७) और साहित्य में पशु-पक्षियों के अव्यक्तानुकरणमूलक शब्दों को देखकर। इस प्रकार हमें ईसा से चार-पाँच सौ वर्ष पूर्व की ग्रीक भाषा तथा उसके उत्तर काल की लैटिन के उच्चारण का वहुत कुछ परिचय मिल जाता है। संस्कृत के उच्चारण का भी पता इन सभी उपायों से लगाया गया है । संस्कृत के सबसे प्राचीन रूप वैदिक का भी उच्चारण हमें मिल गया है । अनेक ब्राह्मण आज भी वेद की संहिताओं का प्राचीन परंपरा के अनुकूल उच्चारण करते हैं। इसके अतिरिक्त प्रातिशाख्य और शिक्षा-ग्रंथों में उच्चारण का सूक्ष्म से सूक्ष्म विवेचन मिलता है। पाणिनि, पतजलि आदि संस्कृत वैयाकरणों ने भी उच्चारण का अच्छा विवेचन किया है। ग्रीक, चीनी, तिब्बती आदि लेखकों ने संस्कृत के 'चंद्रगुप्त'