पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/१६७

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१४२ भाषा-विज्ञान भारोपीय ध्वनि-समूह क कते हैं। स्वर--उस काल के अक्षरों का ठीक उच्चारण सर्वथा निश्चित तो नहीं हो सका है तो भी मान्य व्यवहार के लिये निम्नलिखित संकेतों से उन्हें हम प्र भगाया .., - ;, ; 2, 1; 1, ŭ, ū : (१) इनमें से, ४, 6, 7, 9, हस्व अक्षर हैं । नागरी लिपि में हम इन्हें अ, ए, ओ, इ तथा उ से अंकित कर सकते हैं। (२) और । श्रा, ए, ओ, 1 ई और । ऊ दीर्घ अक्षर होते हैं। (३) अ एक हस्वार्ध स्वर है जिसका उच्चारण स्पष्ट नहीं होता । इसे ही उदासीन (neutral) स्वर कहते हैं। स्वनंत वर्ण-उस मूल भाषा में कुछ ऐसे स्वनंत वर्ण भी थे जो अक्षर का काम करते थे; जैसे-m, Pr, !, नागरी में इन्हें हम मु, न, र, ल, लिख सकते हैं। m, n, आक्षरिक अनुनासिक व्यंजन हैं और , आक्षरिक द्रव (अथवा अंतस्थ ) व्यंजन हैं। संध्यक्षर-अर्धस्वरों, अनुनासिकों और अन्य द्रव वर्गों के साथ स्वरों के संयोग से उत्पन्न अनेक संध्यक्षर अथवा संयुक्ताक्षर भी उस मूलभापा में मिलते हैं। इनकी संख्या अल्प नहीं है। उनमें मुख्य ये हैं-- ai, ai qi či, oi õi, au, āy, eu, eu, ou, ou, व्यंजन-स्पर्श वर्ण- (१) ओष्ठ्य वर्ण- P ph, bh, (२) दैत्य- th, dh, (३) कंठ्य- १ qh, 8 (४) मध्यकंट्य- kh, 81 (५) तालज्य- kh, b, tô cô