पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/१६८

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१४३ } ध्वनि और ध्वनि-विकार नुनासिक व्यंजन m; n, i () और ।। (ब) र्धस्वर और य अर्थात् य और व । व-वर्ण-अनुनासिक और अर्धस्वर वर्गों के अतिरित दो द्रववर्ण य मूल भारोपीय भाषा में विद्यमान थे अर्थात् र और ल । सोम ध्वनि-5 स, 2 ज, jय, v व्ह,7 ग, थ, द, ये सात सोम ध्वनियाँ थीं। यह हमारी भाषा की प्राथमिक ध्वनियों का दिग्दर्शन हुआ। आगे अवस्ता संस्कृत आदि की ध्वनियों के विवेचन के समय इनकी भी या समय यथोचित तुलना करेंगे। वास्तव में हम दो भाषाओं को- दिक संस्कृत और वर्तमान हिंदी कोही उपमान मानकर अन्य पाओं का वर्णन करेंगे क्योंकि इनमें से एक संसार की सबसे नधिक प्राचीन भाषा है और दूसरी सर्वथा.आधुनिक हमारी बोलचाल की भापा (हिंदी) है । इसी से जब हम अवेस्ता के अनंतर वैदिक ध्वनियों का परिचय पा जायेंगे तभी सामान्य तुलना की चर्चा कर सकेंगे। अवेस्ता ध्वनि-समूह अवेस्ता की ध्वनियाँ-~- स्वर- हस्व समानाक्षर- अ, is, us, e , ex, oth दीर्घ समानाक्षरं आ, ई, ऊ, २ श्रा: ए, ओ, ३ आश्र, अँ अथवा आँ। संध्यक्षर-ai ऐ, au औ, of ओइ अए, 40 अत्रो éu आउ । ये सहज संध्याक्षर हैं। इसके अतिरिक्त गुण, वृद्धि, संप्रसारण आदि से भी अनेक संध्यक्षर बन जाते हैं। स्वनंत-४ भी अवेस्ता में पाया जाता है।