पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/१६९

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१४४ भाषा-विज्ञान और व्यजन- कंठ्य-kक, h ख, ग, घ तालव्य-ca-jज,- दत्य- त, थ, द, इ, ईत श्रोष्ठय-प,/फ, b ब, w व अनुनासिक-1, m म, f न, m n अर्धस्वर-y य, v व द्रव-वर्ण-र ऊष्म-5,, Ž प्राण ध्वनि--h ह, यह बंधन अथवा योग- ह नागरी लिपि-संकेतों से इनके उच्चारण का अनुमान किया जा सकता है। इसके सोम अर्थात् धर्प वर्गों का उच्चारण विशेष ध्यान देने की बात है। अवेस्ता की तीन प्रकार की विशेप ध्वनियों का विचार कर लेना उच्चारण की दृष्टि से आवश्यक है अवेस्ता के अनेक शब्दों में कभी श्रादि में, कभी मध्य में और कभी अन्त में एक प्रकार की श्रुति होती है । इस ध्वनि-कार्य के तीन नाम हैं--पुरोहित, अपिनिहिति और स्वरभक्ति । (१) शब्द के आदि में व्यंजन के पहले उच्चारणार्थक इ अथवा उ के आगम को पुरोहिति अथवा पूर्वागम कहते हैं। जैसे-rinahti (सं० रिणक्ति) में 1 और "rupay inti (सं० = रोपयन्ति) में u | यह पूर्वहिति अथवा पुरोहिति अवेस्ता में र से प्रारंभ होनेवाले शों में सदा होती है। पर थ के पूर्व में भी इसका एक उदाहरण मिलता है।