पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/१७०

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ध्वनि और ध्वनि-विकार १४५ (२) अपिनिहिति का अर्थ है शब्द के मध्य में इ अथवा उ का आगम । यह मध्यागम तभी होता है जब उसी शब्द के उत्तर अंश अर्थात् पर अक्षर में इ, ई, प्र, ए, य, उ अथवा व रहता है। र, न, त, प, व, व्ह आदि के पूर्व में इ का आगम होता है पर उ का आगम केवल र के पूर्व में होता है। पूर्वहिति के समान अपिनिहिति भी एक प्रकार की पूर्वश्रुति ही है। airyo उदाहरण-bavati (सं० भवति); agti (सं० एति); ai (सं० अर्थः), aar"na (सं० अरुण), hairvam ( सर्वाम् ) । (३) इसका शब्दार्थ है स्वर का एक भाग और इस प्रकार पुरोहिति और अपिनिहिति भी इसी के अतर्गत आ सकती हैं, क्याकि उनमें भी तो स्वर का एक भाग ही सुन पड़ता है। स्वर-भक्ति पर स्वर-भक्ति का पारिभाषिक अर्थ यहाँ पर यह है कि अवेस्ता में दो संयुक्त व्यंजनों के बीच में एक ऐसा स्वर आ जाता है जिसका छंद से कोई संबंध नहीं रहता। इन दो व्यंजनों में से एक प्रायः र रहता है। इसके अतिरिक्त अवेस्ता में स्वर-भक्ति अंतिम र के बाद अपश्य उच्चरित होती है। स्वर-भक्ति अधिकतर १ की और कसी कभी a, i अथवा 0 की भी होती है। उदाहरण-var dra शब्द (सं० वक्त्र ); 2 md पृथ्वी का (ज्मा ); gar m6 गर्म (सं० धर्मः); antr भीतर ( सं० अंतर् ); livar' सूर्य (सं० स्व:)। फा०१०