पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/१७३

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१४८ भाषा-विज्ञान व्यंजन- काकल्य कंव्य तालव्य मूर्धन्य वस्य॑ द्वयोध्य स्पर्श क, ग टडतद पव समारण स्पर्श ख घ छ भठद थध फभ ब ग म अनुनासिक घर्प वर्ण ह, (विस०) (जिह्वा०), श स (उप०) पार्श्विक ल ल उत्तिप्त लह र अर्द्धस्वर इन सब ध्वनियों के उच्चारण के विषय में अच्छी छानवीन हो चुकी है । (१) सबसे बड़ा प्रमाण कोई तीन हजार वर्ष पूर्व से अवि- च्छिन्न चली आनेवाली वैदिकों और संस्कृतज्ञों की परंपरा है। उनका उच्चारण अधिक भिन्न नहीं हुआ है। (२) शिक्षा और प्रातिशाख्य आदि से भी उस काल के उच्चारण का अच्छा परिचय मिलता है। इसके अतिरिक्त दूसरी निम्नलिखित सामग्री भी बड़ी सहायता करती है। (३) भारतीय नामों और शब्दों का ग्रीक प्रत्यक्षरीकरण (चीनी लेखों से विशेप लाभ नहीं होता पर ईरानी, मोन, ख्मेर, स्यामी, तिब्बती, वर्मी, जावा और मलय, मंगोल और अरवी के प्रत्यक्षरीकरण कभी भी मध्यकालीन उच्चारण के निश्चित करने में सहायता देते हैं । )