पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/१७६

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ध्वनि और ध्वनि-विकार १५१ व्यंजन । आजकल के भापा-वैज्ञानिक भी इसी क्रम से वर्गों का वर्गीकरण करते हैं। (१) अ, आ, इ, ई, उ, ऋ, ऋ, टु, ए, ओ, ऐ, औ। (२) ह, य, व, र, ङ, ब, ण, न, म । (३) क, ख, ग, घ, च, छ, ज, म इत्यादि बीसों स्पर्श । (४)श, ष, स, ह । पाली ध्वनि-समूह । पाली में दस स्वर अ, आ, इ, उ, ऊ, ए, ए, ओ, ओ पाए जाते हैं । ऋ, ऋ, ल, ऐ, औ का सर्वथा अभाव पाया जाता है। ऋ के स्थान में अ, इ अथवा उ का प्रयोग होता है। ऐ, औं के स्थान में पाली ए, ओ हो जाते हैं। संयुक्त व्यंजनों के पहले हस्व ऐ ओ भी मिलते हैं । वैदिक संस्कृत की किसी किसी विभापा में हस्व ऐ ओ मिलते थे पर साहित्यिक वैदिक तथा परवर्ती संस्कृत में तो उनका सर्वथा अभाव हो गया था ( तेपां हस्वाभावात् ) । पाली के बाद हस्त्र ऐ ओ प्राकृत और अपभ्रंश में से होते हुए हिंदी में भी आ पहुँचे हैं । इसी से कुछ लोगों की कल्पना है कि हल ऐ ओ सदा बोले जाते थे, पर जिस प्रकार पाली और प्राकृत तथा हिंदी की साहित्यिक भाषाओं के व्याकरणों में हस्व ऐ ओ का वर्णन नहीं मिलता उसी प्रकार वैदिक और लौकिक संस्कृत के व्याकरणों में भी ऐ ओ का ह्रस्व रूप नहीं गृहीत हुश्रा पर वह उच्चारण में सदा से चला आ रहा है। व्यंजन पाली में विसर्जनीय, जिह्वामूलीय तथा उपध्मानीय का प्रयोग नहीं होता। अंतिम विसर्ग के स्थान में श्री तथा जिह्वामूलीय और उपध्मानीय के स्थान में व्यंजन का प्रयोग पाया जाता है; जैसे-सावको, दुक्ख, पुनप्पुनम् ।