पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/१८८

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ध्वनि और ध्वनि-विकार १६३ सं० एरंड अम्लिका बिंदु हिं० रेंड, रेड़ी इमली बुंद, बूंद श्मश्रु सन्धि पशु . सेंध पोहे ( बो०) सुसर, ससुर ( वो०) व्यंजन-विपर्यय mm विडाल विलार. लघुक हलक गृह घर परिधान पहिरना गरुड़ गडुर लखनउ नखल चाकू काचू नुक्सान नुस्कान थामदी बताशा वसाता पहुँचना चहुँपना भापा में अनेक ध्वनि-विकार संधि-द्वारा होते हैं । स्वरों के बीच में जो विवृति रहती है वह संधि द्वारा प्राय: विकार उत्पन्न किया करती हैं। जैसे स्थविर का गिरनार के शिलालेख में (५) संधि और एकीभाव 'थइर' रूप मिलता है; अवं अई के बीच की प्रवृत्ति मिटकर संधि हो जाने से 'थेर == वृद्ध ) रूप बन जाता है । भाषा के विकास में ऐसे संधिज विकारों का बड़ा हाथ रहता है । आदमी-