पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/१९

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१ भापा-विज्ञान भाषानों के शन्नों और व्याकरण के नियमों आदि में भी कुछ समानता होता है। यह समानता देखकर विद्वानों को जो कुतूहल हुया, मानों जमी की शांनि के प्रबल ने इस आधुनिक भाषा-विज्ञान को जन्म दिया। विषय को सप्ट करने के लिए हम दो चार छोटे मोटे उदाहरण लेते । विारी भाषा का मिथिला बोली से बहुत अधिक साम्य है । मिथिला बांनी गन्ना देश-भापा से बहुत मिलती है और बँगला और उड़िया देश- भागों में कोई बड़ा अंतर नहीं है । दक्षिण भारत की द्रविड़ देश-मापाएँ परम्पर मिलनी जुलती है । इसी प्रकार पंजाब, सिंध और राजपूताने की देशमापात्रा में भी बहुत माम्य है। वही दशा छत्तीसगढ़ी और अवध । यह यात तो हुई केवल भारतवर्ष के भिन्न भिन्न प्रदेशों की देश- मापापों की व मंमार के भिन्न भिन्न खंडों की भाषाओं को लीजिए । मंगन, पानी, यूनानी, लैटिन और प्रारमीनियन आदि भाषाओं के सामग्री व्याकगों में बड़ी समानता है। इसी प्रकार हि और अरवों भी मान मी बालें अनारिया या मारिया देश की भाषाओं से मिलती । पर चीन, कोरिया और मंगोलिया त्रादि भूखंडों की भाषाओं का भी पर बहुत संबंध है। इस समानता का ध्यान रखते हुए हानिरगन लिए हुए परिशीलन का परिणाम (भाषा-विज्ञान' है. माग्न में से अधिक भाषायों का परिशीलन करना मा. नः नागरिमान को 'तुलनात्मक भाषा-विधान' भी पर कि 'प्रानिक नाप में भाश-निशान का मी या gatir पाश्चान्य देशों में त्रा! परंतु ....... गागानि प्रायः मा ग्रीन स्थानों में मान रमिताली र काम किया ? क' में माना भी में गामा भी मिन्न-भिन भागों पाना, निजी या 72 याति भाग्नीय विद्वानों का ved