पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/१९२

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ध्वनि और ध्वनि विकार १६७ कुछ अनि-विकार ऐसे होते हैं जो किसी देश-विशेप अथवा भाषा-विशेष में ही पाए जाते हैं। जैसे---संस्कृत में शब्द के आदि में जहाँ स आता है वहाँ अवेस्ता और फारसी में ह (६) विशेष वनि-विकार हो जाता है। इसी प्रकार के परिवर्तनों को तुलना द्वारा समीक्षा करके ध्वनि-नियमों का निश्चय किया जाता है और प्रत्येक भाषा के विशेष ध्वनि-नियम बनाए जाते हैं। तुलनात्मक भाषा- शास्त्र ने भाषा-परिवार के कुछ ध्वनि-नियम बनाए हैं ध्वनि-विकार के प्रधान कारण दो ही हैं--मुख-सुख और 'अपूर्ण- अनुकरण। यदि इन दोनों कारणों का सूक्ष्म विवेचन करें तो दोनों. में कोई भेद नहीं देख पड़ता । यदि हम मुख-सुख ध्वनि-विकार के का सर्वथा शाब्दिक अर्थ लें अर्थात् उच्चारण में कारण (१) मुख-सुख सुविधा और सरलता, तो यह समझ में नहीं और अनुकरण आता कि किल ध्वनि को कठिन और किसको सरल कहें । ये तुलनावाची शब्द हैं । जो ध्वनि एक सयाने के लिये सरल है वही एक बच्चे के लिये कठिन होती है। जिस वर्ण का उच्चारण एक पढ़े- लिखे वक्ता के लिये अति सरल है वहीं एक अपढ़ के लिये अति कठिन हो जाता है, जिस ध्वनि का उच्चारण एक देश का वासी अनायास असंभव होता ही, अशा का भावान कठिन या सरल नहीं होती। उसकी सरलता और कठिनाई के कारण कुछ दूसरे होते हैं। इन्हीं कारणों के वशीभूत होकर जव उच्चारण पूर्ण नहीं होता तभी विकार प्रारंभ होता है, इसी से अपूर्ण अनुकरण को ही हुम सूब ध्वनि-विकारों का मूल कारण मानत है। यह जान लेने पर कि ध्वनि-विकारों का एकमात्र कारण अपूर्ण अ उच्चारण है, इसकी व्याख्या का प्रश्न सामने आता है। अपूर्ण अनु- करण क्यों और कैसे होता है ? दूसरे शब्दों में हमें यह विचार करना है कि वे कौन सी बाह्य परिस्थितियाँ हैं जो अपूर्ण उच्चारण को जन्म । देती हैं और कौन सी शब्द की ऐसी भीतरी वाते ( परिस्थितियाँ) हैं