पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/१९४

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6 ध्वनि और ध्वनि-विकार १६९ साथ में यह भूलना ही न चाहिए कि भाषा के परिवर्तन में कई कारण एक साथ ही काम किया करते हैं। ध्वनि के उच्चारण पर व्यक्ति और देश से भी बढ़कर प्रभाव पड़ता है काल का। काल से उस ऐतिहासिक परिस्थिति का अर्थ लिया जाता है जो किसी भाषा-विशेष के वक्ताओं. ४ काल अर्थात् ऐति- की किसी विशेष सामाजिक, सांस्कृतिक, अथवा हासिक प्रभाव राजनीतिक अवस्था से उत्पन्न होती है। भारो- पीय भाषा में जो मूर्धन्य ध्वनियाँ नहीं हैं वे भारतीय भाषाओं में द्राविड़ संसर्ग से आ गई थीं। ये ध्वनियाँ दिनोंदिन भारतीय भाषाओं में बढ़ती ही गई। इनके अतिरिक्त यहाँ जितने प्राकृतों और अपभ्रंश में ध्वनि-विकार देख पड़ते हैं उनके निमित्त कारण द्राविड़ों के अतिरिक्त आभीर, गुर्जर आदि आक्रमणकारी विदेशी माने जाते हैं। यह इतिहास और अनुभव से सिद्ध बात है कि जिस भाषा के वक्ता विदेशियों और पिजातियों से अधिक मिलते-जुलते हैं...उसी...भाषा. की ध्वनियों में अधिक विकार होते हैं। जब कोई इतर-भापा-भापी दूसरी दूर देश की भाषा को सीखता है तब प्राय: देखा जाता है कि वह विभक्ति और प्रत्यय की चिंता छोड़कर शुद्ध (प्रातिपदिक) शब्दों का प्रयोग करके भी अनेक स्थलों में अपना काम चला लेता है। यदि ऐसे अन्य-भाषा-भाषी व्यवहार में प्रभावशाली हों~धनी-मानी अथवा राजकर्मचारी आदि हों और संख्या में भी काफी होतो निश्चय ही वैसे अनेक विकृत और विभक्तिरहित शब्द चल पड़ते हैं। जब अपढ़ जनता के व्यवहार में वे शब्द आ जाते हैं तव पढ़े-लिखे लोग भी उनसे अपना काम चलाने लगते हैं । जब दक्षिण और उत्तर के विजातीय और अन्य-भाषा-भाषी मध्यदेश के लोगों से व्यवहार करते रहे होंगे तव वे अवश्य आजकल के विदेशियों के समान अनेक विचार उत्पन्न करते होंगे। इसी से प्राप्त और अपभ्रंश में संस्कृत की अपेक्षा इतने अधिक विभक्ति- लोप और अन्य ध्वनि-विकार देख पड़ते हैं। आधुनिक वक्ता के लिये तो प्राकृत, अपभ्रंश आदि से संस्कृत ध्वनियाँ ही अधिक सरल मालूम