पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/१९८

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१७३ a ध्वनि और ध्वनि-विकार के स्थान में 0 का आदेश हो गया है ! अत: इस प्रकार का ध्वनि- विकार उन नियम का कोई अपवाद नहीं माना जा सकता । वास्तव में यह विकार नहीं, एक ध्वनि के स्थान में दूसरी ध्वनि का आदेश-विधान है.1. प्रत्येक भापा ऐसे आदेश-विधान से फलती- फूलती है । इसी से उपमान आधुनिक भाषा-शास्त्र के अनुसार भापा. विकास के बड़े कारणों में से एक माना जाता है । जो अपवाद उपमान से नहीं सिद्ध किए जा सकते वे प्राय: विभाषाओं अथवा दूसरी भाषाओं से मिश्रण के फल होते हैं । इस प्रकार यदि हम उपमान, विभापा- मिश्रण आदि बायकों का विवेक करके उन्हें अलग कर दें तो यह सिद्धांत मानने में कोई भी आपत्ति नहीं हो सकती कि सभ्य भापाओं में होनेवाले ध्वनि-विकारों के नियम निरपवाद होते हैं, अर्थात् यदि बाह्य कारणों से कोई भाषा दूर रहे तो उसमें सभी ध्वनि-विकार नियमा. नुकूल होंगे। पर इतिहात कहता है कि भापा के जीवन में बाह्य कारणों का प्रभाव पड़े विना नहीं रह सकता, अत्तः ध्वनि-नियमों के निरपवाद होने का च्चा अर्थ यह है कि यदि मुखजन्य अथवा श्रुति- जन्य विकारा के अतिरिक्त कोई विकार पाए जाते हैं तो उपमान आदि बाह्य कारणों से उनकी उत्पत्ति समझनी चाहिए। इस प्रकार के ध्वनि-स्किार के नियम प्रत्येक भापा और प्रत्येक भाषा-परिवार में अनेक होते हैं। हम यहाँ कुछ प्रसिद्ध ध्वनि-नियमों का निवेचन करेंगे, जैसे निम-नियम, आसमान का नियम, व्हनर का नियम, तालव्य-भाव का नियम, ओष्ठ्य-भाव का नियम, मूर्धन्य-भाव का नियम आदि। ग्रिम ने जिस रूप में अपने ध्वनि-नियम का वर्णन किया था उस रूप में उसे आज वैज्ञानिक नहीं माना जा सकता। उसमें तीनों प्रकार के दोष थे। ग्रिम ने दो भिन्न भिन्न काल के ध्वनि- ग्रिम-नियम विकारों को एक साथ रखर अपना सूत्र बनाया था। उसने जिन दो वर्ण-परिवर्तनों का संबंध स्थिर किया है उनमें से दूसरे का क्षेत्र उतना बड़ा नहीं है जितना वह समझता है। वह