पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२

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प्रथम संस्करण की भूमिका गत वर्ष मुझे हिंदी के विद्वानों के सम्मुख "साहित्यालोचन" उपस्थित करने का अवसर प्राप्त हुआ था। आज कोई चौदह मास के अनंतर मैं यह 'दूसरा ग्रंथ लेकर उपस्थित होता हूँ। जिन करणों के वशीभूत होकर मुझे पहले ग्रंथ की रचना का सौभाग्य प्राप्त हुआ था, उन्हीं कारणों ने यह ग्रंथ उपस्थित करने में भी मुझे बाध्य किया है। भाषा-विज्ञान पर एक उत्तम ग्रंथ लिखने का भार मेरे परम मित्र स्वर्ग-वासी पंडित चंद्रधर जी गुलेरी ने अपने ऊपर लिया था। वे अमी इसे प्रारंभ भी न कर सके थे कि कराल-काल ने उन्हें अचानक कवलित कर लिया। मैंने बहुत चाहा कोई दूसरा विद्वान् गुलेरी जी का यह कार्य संपन्न करे; पर इस संबंध में मैंने जो कुछ उद्योग किया, वह सब निष्फल हुश्रा । कहीं से आशा या आश्वासन न मिला और न किसी प्रकार की यथेष्ट सहायता हो पास हुई। इधर काशी-विश्वविद्यालय के एम० ए० हिंदी क्लास के विद्यार्थियों की शांत किंतु हद पुकार बहुत दिनों तक उपेक्षा की दृष्टि से नहीं देखी जा सकती थी। अंत में मैंने गत सितंबर मास में सामग्री इकट्ठा करना प्रारंभ किया और मैं क्रमशः यह ग्रंथ लिखने तथा विद्यार्थियों को लिखे अंश पढ़ाने में लग गया। इस कार्य में अनेक बाधाएँ उपस्थित हुई । स्वास्थ्य ने सबसे अधिक धोखा दिया। साथ ही विद्यार्थियों के अभाव की चिंता और उनके सम्मुख यथासमय उपयुक्त सामग्री उपस्थित करने में अपनी ढिलाई अथवा असमर्थता मुझे और भी व्यन करने लगी। दोनों ने मिलकर, जहाँ तक हो सका, बाधाएँ उपस्थित की और कम से कम इस पुस्तक के लिखने और प्रकाशित होने में तीन महीने का समय अधिक लगा दिया। इस अवस्था में भी पढ़ने और लिखने का काम करते रहने से आँखों ने भी असहयोग कर देने दी सूचना उपस्थित कर दी और उनको शक्ति क्षीण हो गई। परंतु फिर भी मेरे लिये यह कम अानंद और संतोष की बात नहीं है कि यह पुस्तक यथासमय लिखी गई और छप गई ।