पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२००

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ध्वनि और ध्वनि-विकार 4 के स्थान में ० का आदेश हो गया है । अत: इस प्रकार का ध्वनि- विकार उन नियम का कोई अपवाद नहीं माना जा सकता । वास्तव में यह विकार नहीं, एक ध्वनि के स्थान में दूसरी ध्वनि का आदेश-विधान है। प्रत्येक भाषा ऐसे आदेश-विधान से फलती- फूलती है। इसी से उपमान आधुनिक भाषा-शास्त्र के अनुसार भाषा- विकास के बड़े कारणों में से एक माना जाता है। जो अपवाद उपमान से नहीं सिद्ध किए जा सकते वे प्रायः विभाषाओं अथवा दूसरी भाषाओं से मिश्रण के फल होते हैं । इस प्रकार यदि हम उपमान, विभापा- मिश्रण आदि बावकों का विवेक करके उन्हें अलग कर दें तो यह सिद्धांत मानने में कोई भी आपत्ति नहीं हो सकती कि सभ्य भाषाओं में होनेवाले ध्वनि-विकारों के नियम निरपवाद होते हैं, अर्थात् यदि बाह्य कारणों से कोई भाषा दूर रहे तो उसमें सभी ध्वनि-विकार नियमा- तुकूल होंगे । पर इतिहास कहता है कि भाषा के जीवन में बाह्य कारणों का प्रभाव पड़े बिना नहीं रह सकता, अत: ध्वनि-नियमों के निरपवाद होने का सच्चा अर्थ यह है कि यदि मुखजन्य अथवा श्रुति, जन्य विकारा के अतिरिक्त कोई विकार पाए जाते हैं तो उपमान आदि बाह्य कारणों से उनकी उत्पत्ति समझनी चाहिए । इस प्रकार के ध्वनि-विकार के नियम प्रत्येक भाषा और प्रत्येक भाषा-परिवार में अनेक होते हैं। हम यहाँ कुछ प्रसिद्ध ध्वनि-नियमों का विवेचन करेंगे, जैसे निम-नियम, आसमान का नियम, व्हनर का नियम, तालव्य-भाव का नियम, ओष्ठ्य-भाव का नियम, मूर्धन्य-भाव का नियम आदि। ग्रिम ने जिस रूप में अपने ध्वनि-नियम का वर्णन किया था उस रूप में उसे आज वैज्ञानिक नहीं माना जा सकता। उसमें तीनों प्रकार ग्रिम-नियम के दोष थे। ग्रिम ने दो भिन्न भिन्न काल के ध्वनि- विकारों को एक साथ रखार अपना सूत्र बनाया था। उसने जिन दो वर्ण-परिवर्तनों का संबंध 'स्थिर किया है उनमें से दूसरे का क्षेत्र उतना बड़ा नहीं है जितना वह समझता है। वह