पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२०२

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ध्वनि और ध्वनि-विकार और यदि आदि के अ, म और स वर्षों को संकेत मानकर एक सूत्र बनावें तो 'अमसमसासाम' के समान सूत्र बन सकता है। मैक्समूलर के समान भापा-वैज्ञानिक इन तीन प्रकार के वर्ण- विकारों को देखकर यह कल्पना किया करते थे कि मूल भारोपीय भाश तीन भागों में-तीन विभापाओं के रूप में विभक्त हो गई थी। इसी से व्यंजनों में इस प्रकार का विकार पाया जाता है, पर अव यह कल्पना सर्वथा असंगत मानी जाती है। प्रथमत: ये विकार केवल जर्मन (अर्थात् ट्यूटानिक) वर्ग में पाए जाते हैं, अन्य सभी भारोपीय भाषाओं में इनका अभाव है। उस जर्मन भापा-वर्ग की भी अधिक भाषाओं में केवल प्रथम वर्ण-परिवर्तन के उदाहरण मिलते हैं। अब यह भी निश्चित हो गया है कि द्वितीय वर्ण-परिवर्तन का काल बहुत पीछे का है। प्रथम वर्ण-परिवर्तन ईसा से पहले हो चुका था और द्वितीय वर्ण-परिवर्तन ईसा से कोई सात सौ वर्ष पीछे हुआ था। जिस उच्च जर्मन में द्वितीय वर्ण-परिवर्तन हुआ था उसमें भी वह पूर्ण रूप से नहीं हो सका। इसी से यह नियम सापवाद हो जाता है। अत: अव द्वितीय वर्ण-परिवर्तन को केवल जर्मन भापाओं की विशेषता मानकर उसका पृथक वर्णन किया जाता है और केवल प्रथम वर्ण-परिवर्तन निम-नियम' के नाम से पुकारा जाता है। जैकव ग्रिम ने सन् १८२२ में लैटिन, ग्रीक, संस्कृत, गायिक, जर्मन, अंगरेजी आदि अनेक भारोपीय भाषाओं करके एक ध्वनि-नियम बनाया था। उस नियम निम-नियम का से यह पता लगता है कि किस प्रकार जर्मन-वर्ग निर्दोष श की भाषाओं में मूल भारोपीय स्पर्श का विकास ग्रीक, लैटिन, संस्कृत आदि अन्यवर्गीय भाषाओं की अपेक्षा भिन्न प्रकार से हुआ है। उदाहरणार्थ- सै० श्री. लै अँगरेजी द्वि doo पाद TO8-45 pedis foot शब्दों की तुलना suo TWO कः quis who