पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२०३

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भापा-विज्ञान इस प्रकार तुलना करने से यह ज्ञात होता है कि सं०, प्री०, लै. आदि d द, p प,k क, के स्थान में अँगरेजी आदि जर्मन भाषाओं में त' फf व्ह wh, हो जाता है। इसी प्रकार की तुलना से ग्रिम ने यह नीचे लिखा निष्कर्ष निकाला था- संस्कृत यादि में K. T. P. G D B. Gh.Dh.Bh. अँगरेजी आदि में H. Th. F. K. T. P. G. D. B. इस प्रकार ग्रिम नियम का अाधुनिक रूप यह है कि भारोतीय आघोष-सर्श K, T, P जर्मन-वर्ग में अघोष घर्ष h, th, f हो जाते हैं, भारोपीय घोष-स्पर्श g, d, b जर्मन में K, , p अघोष हो जाते हैं। और भारोपीय महाप्राण-स्पर्श gh, dh, bh जर्मन में अल्पप्राण ग, द, ब हो जाते हैं । व्यंजनों में यह परिवर्तन ईसा से पूर्व ही हो चुका था। इस ग्रिम-नियम को ही जर्मन भाषाओं का 'प्रथम-र्ण परिवर्तन भी कहते हैं। सिद्धांतत: ध्वनि-नियम का कोई अपवाद नहीं होता। अत: जब निम-नियम के विरुद्ध कुछ उदाहरण मिलने लगे तो भाषा-वैज्ञानिक उनका समाधान करने के लिये अन्य नियमों की खोज करने लगे और फल-स्वरूप तीन उप- नियम स्थिर किए ग-(१) प्रासमान का उपनियम, (२) व्हर्नर का उपनियम और (३) निम-नियम के अपवादों का नियम अर्थात् एक यह भी नियम बना कि कुछ संधिज ध्वनियों में निम- नियम नहीं लगता। (१) साधारण ग्रिम-नियम के अनुसार K, T, और P का H, Th और F होना चाहिए पर कहीं कहीं इस नियम का स्पष्ट अपवाद देख पड़ता है। इस पर ग्रासमान ने यह नियम खोज निकाला कि श्रीक और संस्कृत में एक अक्षर (अर्थात् शब्दोश ) के आदि और अंत दोनों स्थानों में एक ही साथ प्राण-ध्वनि अथवा महाप्राण-स्पर्श नहीं रह सकत; अर्थात् एक अक्षर में एक ही प्राण-ध्वनि रह सकती है। अपवाद