पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२०४

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ध्वनि और ध्वनि-विकार १७७ (२) प्रासमान ने तो यह सिद्ध किया था कि जहाँ ग्रीक K,T,P के स्थान में जर्मन G.D.B. होते हैं, वहाँ समझना चाहिए कि K,T,P प्राचीनतर महाप्राण स्पशों के स्थानापन्न हैं पर कुछ ऐसे भी उदाहरण मिलने लगे जिनमें शुद्ध K,T,P के स्थान में जर्मन भाषाओं में G.D.B. हो जाते हैं। इनका समाधान ग्रासमान का नियम भी नहीं कर सकता; अत: इनको समझाने लिये व्हर्नर ने एक तीसरा ही नियम बनाया-शब्द के मध्य में आनेवाले K,T,P और s के व्हर्नर का नियम अव्यवहित पूर्व में यदि भारोपीय काल में कोई उदात्त स्वर रहता है तब उसके स्थान में H,PF और S आते हैं अन्यथा G(GW), D,B, और R आते हैं। भारोपीय स्वरों का निश्चय अधिकतर संस्कृत से और कभी कभी ग्रोक से होता है। इन नियमों के भी विरुद्ध उदाहरण मिलते हैं पर उनका कारण उपमान ( = अंध-सादृश्य ) होता है; जैसे--भ्राता में त के पूर्व में उदात्त है अत: brother रूप होना ठीक है, पर पिता, माता में त के पूर्व में उदात्त नहीं है अत: fadar; modar होना चाहिए पर उपमान की लीला से ही father और mother चल पड़े। (३) विशेष अपवाद--कुछ संयुक्त वर्ण ऐसे होते हैं जिनमें ग्रिम-नियम लागू नहीं होता । हम पीछे कह आये हैं कि परिस्थिति के अनुसार ध्वनि-नियम काम करता है । ग्रिम का नियम असंयुक्त वों में सदा लगता है। यह ग्रासमान और व्हर्नर ने सिद्ध कर दिया है । पर कुछ संयुक्त वर्गों में उसकी गति रुक जाती है। इसके भी कारण होते हैं पर उनका विचार यहाँ संभव नहीं है । व्हर्नर ने लिखा है कि ht, hs, ft, fs, sk, st, sp-इन जर्मन संयुक्त वर्गों में उसका नियम नहीं लगता । इनका विचार हम इस तीसरे नियम के अंतर्गत इस प्रकार कर सकते हैं; यथा- (अ) भारोपीय sk, st, sp---इनमें कोई विकार नहीं होता। फा०१२ उपमान