पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२०७

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१८० भाषा-विज्ञान बिना भारतीय शब्दों का संबंध ग्रीक आदि से जोड़ने में कोरी कल्पना से काम लेना पड़ेगा और तुलना अथवा व्युत्पत्ति आदि वैज्ञानिक विषय न होकर खेल हो जायेंगी। नीचे लिखे उदाहरणों की यदि तुलना करें तो हम देखते हैं कि एक ही धातु से बने दो या तीन शब्दों में केवल अक्षर-परिवर्तन होने से अर्थ और रूप में भेद हो गया है, व्यंजन सर्वथा अपश्रुति अक्षुण्ण हैं, केवल स्वर-वर्गों में परिवर्तन हुआ है । संबद्ध शब्दों में इस प्रकार का कार्य अनेक भारोपीय तथा सेमेटिक भाषाभा में पाया जाता है । इसी कार्य के सिद्धांत को अपश्रुति अथवा अक्षरावस्थान कहते हैं। To Pei'tho, pe'poitha s epithon. ito fido, foedus, it fides. so Sing, sang site sung. FAF-binden, band te gebunden. सं० भृतः, भरति और बभार । सं० उदितः, वदति और वाद । हि मिलना और मेल । मेला, मिलाप अरबी-हिमर और हमीर। दि. Sha ५. अपश्रुति के द्वारा शब्दों और रूपों की रचना में बड़ा भेद हो जाया करता है। प्राचीन भारोपीय काल में तो अपश्रुति का बड़ा अपश्रुति की उत्पत्ति प्रभाव रहा होगा । उस प्रभाव के अवशेष आज भी ग्रीक, संस्कृत आदि में देख पड़ते हैं। यह अपश्रुति स्वयं स्वर और बल के कार्यों का फल है अर्थात् अपश्रुति का अध्ययन करने के लिये स्वर और बल का विचार करना चाहिए। स्वर और बल का साधारण परिचय हम पीछे दे चुके हैं। स्वर का प्रभाव स्वर-वणों के स्वभाव पर अधिक पड़ता है और बल की प्रवृत्ति अपने पड़ोसी अक्षर को लुप्त अथवा क्षीण करने की ओर देखी जाती है। ये दोनों ही बातें अपश्रुति में देखने को मिलती हैं। इसी