पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२१०

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रूप-विचार १८३ रूपों के प्रयोग और अर्थ की विशेष चिंता की जाती है वह वाक्य- विचार कहलाता है। इस प्रकार दोनों ही भागों का विषय रूप ही रहता है। इसी से व्याकरण के ये दोनों भाग रूप-विचार में अंतर्भूत हो जाते हैं । यहाँ पर हमें इतना अवश्य ध्यान में रखना चाहिए कि वाक्य-विचार के दो भेद किए जा सकते हैं। उनमें से एक का संबंध रूपों से अधिक रहता है और दूसरे का अर्थ-मीमांसा से। अत: वाक्य-विचार का कुछ संबंध रूप- विचार से और कुछ अर्थ-विचार से रहता है। अब तो अनेक भाषाशास्त्री वाक्य-विचार का पृथक् ‘अध्ययन करते हैं और तव रूप- विचार में केवल शब्द के रूपों का विचार होता है । पर अभी हम रूप-विचार में ही वाक्य-विचार के रूपवाले भाग को ले लेंगे। रूप-विचार और व्याकरण में भेद केवल इतना रहता है कि व्याकरण अधिक वर्णन-प्रधान होता है और रूप-विचार विचार-प्रधान ! रूप-विचार में रूपों की तुलना, उनका इतिहास रूप-विचार और तथा उन से संबंध रखनेवाले सामान्य सिद्धांतों व्याकरण में भेद का विचार किया जाता है। हम यहाँ संस्कृत के उन ग्रंथों को रूप-विचार अथवा भाषा-विज्ञान के ग्रंथ मानेंगे जिनमें व्याकरण के नाम पर सामान्य सिद्धांतों की व्याख्या हुई है, जैसे वैयाकरण-भूषण, मंजूषा आदि । हम पाणिनि की अष्टाध्यायी अथवा उसके आधुनिक रूप सिद्धांतकौमुदी' को अवश्य आदर्श व्याकरण मान सकते हैं। उसके प्रकरणों पर सामान्य इष्टि डालने से हमें व्याकरण के प्रकरणों का साधारण-ज्ञान हो सकता है । सिद्धांत- कौमुदी में ११ प्रकरण माने जाते हैं... (?) Sweet's New English Grammar, Part I, Page 204. (२) व्याकरण के आधार पर ही रूप-विचार की मित्ति उठाई जाती है, अतः प्रकरण दोनों में प्रायः एक से ही होते हैं।