पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२१३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१८६ भाषा-विज्ञान शब्द-पक्ष की परीक्षा समास, तद्धित, कृदन्त और सन्नन्त आदि में हुई है। इस शब्द-पक्ष को भी भली-भाँति समझने के लिये हमें एक भेद समझ लेना चाहिए । शब्द दो प्रकार से विकसित हुआ करते हैं- कभी अनेक शब्द मिलकर एक हो जाते हैं और कभी एक शब्द में प्रत्यय लगाने से दूसरा नया शब्द बन जाता है। जैसे राजा और पुत्र इन दो शब्दों से मिलकर एक शब्द राजपुत्र बन जाता है; और दूसरी विधि के अनुसार राजा में प्रत्यय जुड़कर राजकीय, राजापन आदि नये शब्द बन जाते हैं। पहली प्रक्रिया को समाहार-विधि अथवा समास वृत्ति और दूसरी को निष्पत्ति विधि अथवा प्रत्यय वृत्ति कहते हैं। यद्यपि अब वाक्य-विचार का अध्ययन पृथक् होने लगा है और वाक्य विचार की अनेक बातें अर्थ-विचार के प्रकरण में आ जाती हैं विशेष और सामान्य तो भी उनका संबंध रूप-बिचार से टूट नहीं सका रूप-विचार है । अत: रूप-विचार में किसी भाषा के रूप- विचार का विशेष अध्ययन करने में हमें ऊपर गिनाई हुई सभी बातों का ऐतिहासिक और तुलनात्मक दृष्टि से (3) Cf. H. Sweet's History of Language P. 41 and 42. वहाँ समाहार विधि (Composition) और निष्पत्ति विधि ( Deriva- tion ) दोनों प्रकार की पद विधियों का सुंदर भेद किया गया है। ये दोनों हो विधियाँ यौगिक शब्दों से संबंध रखती हैं। शब्द-साधन की दृष्टि से शब्द दो ही प्रकार के होते हैं रूढ़ और यौगिक । रूद में विभक्ति सीधे लग जाती है पर यौगिक शब्द में प्रकृति और प्रत्यय के योग से एक शब्द निष्पन्न हो जाता है, तब उसमें विभक्ति लगती है और शब्द रूपवान् होकर प्रयोगार्ह बनता है! यहाँ इतना स्मरण रखना चाहिए कि यह सब शब्द-साधन की प्रक्रिया वैयाकरण की दृष्टि से सत्य मानी जाती है, पर भाषा-विज्ञान और शब्द-दर्शन का पहुँचा हुश्रा विद्यार्थी इस उपयोगी और उपादेय प्रक्रिया को सर्वथा काल्पनिक मानता है । ( देखो इसी प्रकरण में अागे)