पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२१८

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रूप-विचार १९१ feet में जो स्वर-परिवर्तन से बहुवचन का बोध होता है उसका विश्लेषण करके नहीं दिखाया जा सकता, क्योंकि toot से feet होने में प्रकृति का अक्षर ही परिवर्तित हो जाता है। दूसरे ढंग के उदाहरण समेटिक और भारोपीय भाषाओं की अपश्रुति में मिलते हैं । अपश्रुति और विभक्ति रूप-मात्र की एक ही कोटि में आते हैं; क्योंकि यदि विचारपूर्वक देखा जाय तो अपश्रुति एक प्रकार की अपश्रुति और विभक्ति अंतर्विभक्ति ही तो है। हिंदी में थोड़ा का बहु- वचन होता है घोड़े अथवा अँगरेजी में boot का बहुवचन boots होता है । पर अरबी में 'हिमर' (गदहा) का बहुवचन होता है हमीर। हिंदी और अँगरेजी में जो वाद्य-विभक्ति काम करती है वही अरबी में अंतर्विभक्ति अथवा अपश्रुति करती है ! अपश्रुति के समान हो स्वर (सुर ) भी एक महत्त्वपूर्ण रूप-मात्र है। सुदूरपूर्व को स्यामी, अनामी, चीनी आदि भाषाओं में स्वर के द्वारा शब्द अनेक अर्थो और संबंधों का बोध कराते हैं। अफ्रीका की अनेक भाषाओं में भी स्वर का रूप-बोधन के लिये प्रयोग होता है। भारोपीय भापात्रों में भी स्वर का कम महत्व नहीं था। ग्रीक और संस्कृत के समान स्वर (१) देखो-अपश्रुति अथवा अक्षरावस्थान का वर्णन-भाषा-रहस्य पृ०३३७। (२) सच पूछा जाय तो अरबी में अपश्रुति नहीं होती। अरबी शब्दरूपों में होनेवाले जिन स्वर-विकारों को कई विद्वान् अपश्रुति कहते हैं उसे ही अनेक आधुनिक भाषा-शास्त्री संचारी (चर) अंतर्विभक्ति कहते हैं। इनका संबंध अधिक रूपों से ही रहता है। इनसे स्वर, बल आदि का कोई संबंध नहीं रहता । श्रतः इन्हें अपश्रुति मानना ठीक नहीं। अरबी आदि सेमेटिक भाषाओं में जो स्वर-विकार अपश्रुति के नाम से प्रसिद्ध हैं वे स्पष्ट ध्वनि-नियमों के अंतर्गत पा सकते हैं।