पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२२१

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१९६ भाषा-विज्ञान सेमेटिक भाषाओं से सर्वथा भिन्न देख पड़ती है। चीनी में रूपमात्र इतने अधिक स्वतंत्र होते हैं कि हम शब्दों के दो भेद कर सकते हैं-प्रकृति. शब्द (अथवा वाचक) और प्रत्यय-शब्द (अथवा घोतक)। चीनी वैयाकरण प्रकृति-शब्दों को पूर्ण और प्रत्यय-शब्दों को रिक्त' कहा करते हैं। पूर्ण अथवा प्रकृति-शव्द ही हमारे अर्थ-मात्र हैं। रिक्त शब्दों को ही दूसरे विद्वान रूप-शब्द अथवा साधन-शब्द कहते हैं क्योंकि वे प्रकृति को रूपवान् अथवा सिद्ध बनाते हैं। चीनी में मेरे लड़के के लिये कहते हैं वो ती युत-त्सु'। इसमें वो (मैं) और युत-त्सु ( लड़का) दो पूर्ण शब्द हैं। ती रिक्त शब्द के द्वारा वाक्य में अर्थ का द्योतन अथवा प्रकाशन होता है। वह हिंदी के 'का' पर- सर्ग का काम करता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि ती रूप-मात्र अपने अर्थ-मात्र से सर्वथा पृथक् है । यह स्वातंत्र्य यहाँ तक बढ़ा हुआ है कि वही शब्द कभी पूर्ण ( प्रकृति ) शब्द का काम करता है और कभी रिक्त (प्रत्यय ) शब्द का; जैसे लीपात्रो (पूरा करना) एक क्रिया है जो भूतकाल का द्योतन करने के लिये दूसरी क्रियाओं के साथ भी प्रयुक्त होती है। लई (आना), ला (समाप्त ) = आया हैइस वाक्य में ला वास्तव में लीआरओ का ही दूसरा रूप है। तुर्की भाषा में भी रूपमात्र बड़े स्वतंत्र होते हैं। उसमें (प्रत्यय- शब्दों का नहीं प्रत्युत ) प्रत्ययों का प्रयोग होता है तो भी वे प्रकृति के साथ किसी नियम से बँधे नहीं रहते। तुर्की में उन्होंने प्रेम किया () Empty. () Form—tvords. (३) इस प्रकार प्रकृति-शब्द, वाचक, पूर्णशब्द अथवा साध्यशब्द अर्थ- मात्र के और प्रत्यय-शब्द, द्योतक, साधक, रिक्त-शब्द, रूप-शब्द अथवा साधन- शब्द रूप-मात्र के पर्याय हो सकते हैं । इन नामों पर विचार करने से अर्थ स्वयं स्पष्ट हो जाता है । इन अन्वर्थ नामों पर विचार करने से अर्थ-मात्र और रूप-मात्र की विशद व्याख्या भी हो सकती है।