पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२२७

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२०२ भाषा-विज्ञान रूप-साधक प्रत्यय 1 प्रत्यय भी दो प्रकार के होते हैं नाम-प्रत्यय और आख्यात-प्रत्यय । नाम प्रत्ययों में से कुछ तो ऐसे होते हैं जो वचन तथा कारक के बोधक होते हैं और कुछ ऐसे होते हैं जिनसे क्रिया-विशेषण अर्थात् अव्ययों के रूप बनते हैं। पहले प्रकार के प्रत्यय अर्थात् कारक प्रत्यय संस्कृत में सुप् कहे जाते हैं- रामः राम रामाः; राम रामौ रामान आदि उसके उदाहरण दूसरे प्रकार के प्रत्ययों के उदाहरण अत:, कुतः, ततः, मुखतः, अभितः, अत्र, देवत्र, दक्षिणाहि आदि हैं । वास्तव में ये दूसरे प्रकार के प्रत्यय कारक-प्रत्ययों से भिन्न नहीं हैं; वे भी संज्ञा, सर्वनाम और विशेषणों के साथ लगते हैं और कभी कभी इस प्रकार बने शब्द कारकों की भाँति प्रयुक्त भी होते हैं। अंतर केवल यही है कि ऐसे शब्द अव्यय होते हैं । वही प्रत्यय किसी भी वचन, लिङ्ग अथवा कारक के साथ आ सकते हैं । चिरात्, सहसा, शनैः, आदौ, रहसि, समीपे आदि विभक्ति- प्रतिरूपक अध्ययों को देखकर यह कहना ठीक मालूम पड़ता है कि क्रियाविशेषण प्रत्यय भी वास्तव में विभक्ति-प्रत्ययों के अंतर्गत आ जाते हैं अर्थात् ये भी रूप-साधक प्रत्यय हैं। (१) जिन शब्दों में रूप-भेद नहीं होता वे ही तो अव्यय (= व्यब- रहित ) कहे जाते हैं, फिर अव्ययों के रूप कैसे | अव्ययों का इतिहास कहता है कि सविभक्ति और रूप-भेदवाले शब्द ही जब कारण-वश अपने सगोत्रियों से पृथक हो जाते हैं तब वे अव्यय बन जाते हैं और सदा एकरूप रहने लगते हैं। वास्तव में अव्यय भी सुबन्त ही हैं। (२) देखो इन विभक्ति प्रत्ययों के लिये-Whitney's Grammar $ 310 or Macdonell's Classical Grammar or affufa ४१११२ वौजस्मौट्छष्टाभ्यांभिरडेभ्याम्भयससिभ्याम्भ्यस्ङसोसाम्ङयोस्सुम् । (@) "There is no ultimate difference between such suffixes and the case-endings in declcasion" Whitney $ 1017 a.